"महाशिवरात्रि: भगवान शिव की महिमा और आत्मजागरूकता का प्रतीक"
महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जो हर साल माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान शिव को समर्पित है और शिव के प्रभावी और उपकारी स्वरूप की पूजा की जाती है। महाशिवरात्रि के दिन भक्त शिव मंदिरों में जाते हैं, शिवलिंग का अभिषेक करते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन के लिए विशेष प्रार्थनाओं, भजनों और मंत्रों की रटी की जाती है। यह त्योहार हिंदू समाज में भक्ति, श्रद्धा और साधना की ऊर्जा को उत्तेजित करता है। इसके अलावा, कुछ स्थानों पर भारतीय संस्कृति में महाशिवरात्रि के दिन रात भर जागरण भी आयोजित किया जाता है।
महाशिवरात्रि कैसे मनाया जाता है
महाशिवरात्रि को मनाने का तरीका विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में थोड़ा-बहुत भिन्न हो सकता है, लेकिन कुछ सामान्य पद्धतियाँ हैं जो लोग इस त्योहार के दिन अपनाते हैं:
महाशिवरात्रि के दिन भक्ति, ध्यान और शांति की प्राप्ति के लिए समर्पित होता है। यह एक पवित्र अवसर है जो लोगों को शिव के प्रति भक्ति और समर्पण का मार्ग दिखाता है।
शिवरात्रि को क्या कहा जाता है
महाशिवरात्रि को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे:
ये सभी नाम एक ही अवसर को दर्शाते हैं, जो भगवान शिव की आराधना और समर्पण के लिए निर्मित है।
शिवरात्रि और महा शिवरात्रि में क्या अंतर है
"शिवरात्रि" और "महाशिवरात्रि" दोनों ही हिंदू त्योहार हैं, जो भगवान शिव को समर्पित हैं, लेकिन इन दोनों के बीच थोड़ा अंतर होता है।
सारांश में, महाशिवरात्रि को शिवरात्रि का उत्कृष्ट रूप माना जाता है और इसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
शिवरात्रि मनाने का क्या कारण है
"शिवरात्रि" और "महाशिवरात्रि" दोनों ही हिंदू त्योहार हैं जो भगवान शिव को समर्पित हैं, लेकिन ये दो अलग-अलग दिनों पर मनाए जाते हैं और उनके परम्परागत महत्व में भी कुछ अंतर हो सकता है।
इस प्रकार, शिवरात्रि और महाशिवरात्रि दोनों ही भगवान शिव को समर्पित हैं, लेकिन इनमें अंतर होता है कि शिवरात्रि हर माह मनाई जाती है जबकि महाशिवरात्रि एक बार वर्ष में होती है।
शिवरात्रि का मनाने का कारण विभिन्न हो सकता है, लेकिन कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:
शिवरात्रि की रात का क्या महत्व है
"शिवरात्रि" और "महाशिवरात्रि" दोनों ही हिंदू त्योहार हैं जो भगवान शिव को समर्पित हैं, लेकिन ये दो अलग-अलग दिनों पर मनाए जाते हैं और उनके परम्परागत महत्व में भी कुछ अंतर हो सकता है।
इस प्रकार, शिवरात्रि और महाशिवरात्रि दोनों ही भगवान शिव को समर्पित हैं, लेकिन इनमें अंतर होता है कि शिवरात्रि हर माह मनाई जाती है जबकि महाशिवरात्रि एक बार वर्ष में होती है।
शिवरात्रि का मनाने का कारण विभिन्न हो सकता है, लेकिन कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:
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3/3/2024 Walmart Online Shopping: Find Deals on Groceries, Electronics, Home Goods & More!"Read NowWalmart
Walmart is one of the world's largest multinational retail corporations, known for its hypermarkets, discount department stores, and grocery stores. Founded by Sam Walton in 1962 in Rogers, Arkansas, Walmart has grown into a global behemoth with a presence in multiple countries.
Some key points about Walmart:
walmart profile
Walmart history
On July 2, 1962, Sam Walton opens the first Walmart store in Rogers, Arkansas. The Walton family owns 24 stores, ringing up $12.7 million in sales. The company officially incorporates as Wal-Mart Stores, Inc.
Walmart's history began in 1950 when Sam Walton purchased a store in Oklahoma City and opened Walton's 5 & 10. In 1962, Walton opened the first Walmart store, called "Wal-Mart Discount City", in Rogers, Arkansas. The store sold sporting goods, fabric, photo supplies, watches, and jewelry.
Walmart's strategy was based on low prices and rural markets. The company became a publicly traded company in the 1970s and opened its first distribution center. In 1988, CEO Glass launched a major expansion program that resulted in hundreds of new stores over the next decade. By the end of the 1990s, Walmart had 3,996 stores in the U.S. and 1,004 stores globally.
In 2015, Walmart had 11,000 stores in 27 countries and 23 million employees. In 2016, Walmart introduced Walmart Pay, a digital payment tool, and purchased Jet.com, an online retailer. The original Walton store is still open and serves as a gift shop. It sells retro toys and candy and has some of the original fixtures. 1776 में कौन सा युद्ध हुआ?
1776 में, संयुक्त राज्य अमेरिका की आजादी के पश्चात विशेष रूप से कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ था। यह साल आजादी की घोषणा के बाद का था और इसके पश्चात युद्ध की प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी। अमेरिकी राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन के बीच विदेशी क्रियाओं के दौरान युद्ध विप्लव बढ़ा था, जिससे वह 1783 में पेरिस संधि के माध्यम से अपनी स्वाधीनता हासिल कर सकी। इस समय के दौरान क्रियाशीलता और संघर्ष इंग्लैंड के साथ जारी रहे, जो अमेरिकी क्रांतिकारियों के संघर्ष का हिस्सा था।
4 जुलाई 1776 में क्या हुआ था?
4 जुलाई 1776 को अमेरिकी निर्णयक संस्था, कंटिनेंटल कांग्रेस, ने एक महत्वपूर्ण संकल्प पास किया था। इस संकल्प में, उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रीय आन्दोलन की घोषणा की और अमेरिकी कला और विज्ञान में उनकी संगठनात्मक क्षमता की पहचान की गई। इस घोषणा के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका की आजादी की प्रक्रिया आरम्भ हुई और वे ब्रिटिश साम्राज्य से अलग होने की लड़ाई में अग्रसर हुए।
इस घोषणा को बाद में अमेरिकी आजादी के प्रतीक के रूप में मान्यता मिली और 4 जुलाई को संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रीय त्योहार, जिसे "इंडिपेंडेंस डे" या "फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई" के नाम से भी जाना जाता है, मनाया जाता है।
अमेरिका कैसे आजाद हुआ था?
अमेरिका की आजादी की प्रक्रिया विस्तारपूर्वक थी और कई घटनाओं के पश्चात हुई। यहां एक संक्षेप में आपको अमेरिका की आजादी की मुख्य घटनाओं के बारे में बताया जा रहा है:
भारत सबसे पहले किसका गुलाम था?
भारत के इतिहास में, ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत को सबसे पहले अपना गुलाम बनाया था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, जो पहले से ही भारत में व्यापारी गतिविधियों को संचालित कर रही थी, ने शासन का आदान-प्रदान किया और ब्रिटिश साम्राज्य के रूप में भारत पर काबिज़ी जमाई। 1757 के प्लासी युद्ध के बाद, जब ब्रिटिश कंपनी ने बंगाल में मुग़ल साम्राज्य के साम्राज्यिक सत्ताधारी को हराया, उसके बाद से भारत ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने अपना प्रशासन भारत पर स्थापित किया और देश को अपनी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक नीतियों के तहत नियंत्रित किया। इस गुलामी काल को "ब्रिटिश राज" या "राजवंश" के रूप में भी जाना जाता है। भारत की स्वतंत्रता में यह एक महत्वपूर्ण चरण था, जो 1947 में अंत हुआ जब भारत ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की। अमेरिका गुलाम कब हुआ था?
अमेरिका गुलामी की अवधि ब्रिटिश साम्राज्य के वश में बिताई गई थी. ब्रिटिश साम्राज्य ने अमेरिकी कोलोनियों को अपने अधीन किया था। इसकी प्रारंभिक अवधि 1607 में जब विर्जिनिया कंपनी ने विर्जिनिया का आदिवासी क्षेत्र की स्थापना की थी, समझी जा सकती है।
इसके बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने धीरे-धीरे अन्य कोलोनियों का अधिग्रहण किया और अपना कर्तव्यपूर्ण नियंत्रण स्थापित किया। परंतु अमेरिकी आजादी का आंदोलन बढ़ते और स्थानीय विरोध के बावजूद बढ़ता गया और आखिरकार 1775 से 1783 तक के अमेरिकी राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान आपत्तिजनक युद्ध हुआ, जिसके बाद अमेरिका ने ब्रिटिश साम्राज्य के वश से आजादी प्राप्त की। आजादी से पहले अमेरिका पर किसने शासन किया था?
आजादी से पहले, अमेरिका पर विभिन्न यूरोपीय देशों ने शासन किया था। पहले स्पेन और पुर्तगाली इस क्षेत्र में आगमन किया और उसके बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने यहां अपनी शक्ति स्थापित की।
क्रिस्टोफर कोलंबस ने 1492 में स्पेन के प्रतिनिधित्व में वेस्ट इंडीज का द्वीप खोजा, जिसमें अमेरिका शामिल था। स्पेनिश एक्सप्लोरर्स ने बाद में विभिन्न हिस्पानिक देशों में अमेरिका के अंशों का अधिग्रहण किया। इसके बाद, 17वीं और 18वीं सदी में ब्रिटिश साम्राज्य ने अमेरिका के बड़े हिस्से पर कब्जा किया। विर्जिनिया कंपनी और मैसाचुसेट्स बे कंपनी जैसी ब्रिटिश कंपनियां अमेरिकी कोलोनियों में आबादी बढ़ाने के उद्देश्य से स्थापित की गईं। इन कंपनियों द्वारा व्यापार और नियंत्रण के प्रशासनिक कार्य संचालित किए गए। इस प्रकार, अमेरिका पहले स्पेनिश साम्राज्य और फिर ब्रिटिश साम्राज्य के शासन के अधीन था। इसके बाद, अमेरिकी निर्णयक संस्था ने अपनी अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस / परिवार दिवस / अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस
अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस को अंग्रेजी में 'अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस' कहा जाता है। हर साल 15 मई को पूरी दुनिया में 'अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस' के रूप में मनाया जाता है। किसी भी समाज का केंद्र परिवार होता है।
यह परिवार है जो सभी उम्र के लोगों को आराम देता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य वैश्विक समुदाय परिवारों को जोड़ना है। यह परिवारों से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाने और परिवारों को प्रभावित करने वाली आर्थिक, जनसांख्यिकीय और सामाजिक प्रक्रियाओं के ज्ञान को बढ़ाने के अवसर प्रदान करता है। यह दिन यूनिवर्सल पीस फेडरेशन द्वारा भी मनाया जाता है जहां उनका मानना है कि परिवार में स्थायी शांति सबसे समर्पित सामाजिक इकाई है यानी शांति और प्रेम की पाठशाला। संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1994 को परिवार का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया। उसके बाद 1995 से हर साल इस दिन को मनाया जाता है।
International Family Day is called 'International Family Day' in English. Every year May 15 is celebrated as 'International Family Day' all over the world.
The center of any society is the family. It is the family that brings comfort to people of all ages. The main purpose of celebrating this day is to connect the global community families. It provides opportunities to spread awareness of issues related to families and to enhance knowledge of the economic, demographic and social processes affecting families. The day is also observed by the Universal Peace Federation where they believe that lasting peace in the family is the most dedicated social unit i.e. the school of peace and love. The United States of America declared 1994 as the International Year of the Family. After that, since 1995, this day is celebrated every year. अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस क्यों मनाया जाता है?
अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस हर साल भारत में विभिन्न परिवारों के मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने और परिवारों के महत्व को स्वीकार करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन देश के विभिन्न संगठनों द्वारा मनाया जाता है। जहां संगठन के सदस्य और साथ ही उनके परिवार के सदस्य अलग-अलग कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस की शुरुआत किसने की?
1995 में कोपेनहेगन, डेनमार्क में आयोजित सामाजिक विकास के लिए विश्व शिखर सम्मेलन की सिफारिश के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1994 में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया गया था।
वैश्विक परिवार दिवस का विषय क्या है?
हालाँकि, हम भविष्य में हमेशा प्रगति, सुधार और चंगा कर सकते हैं। इसीलिए वैश्विक परिवार दिवस 2023 की थीम “ बेहतर भविष्य की ओर काम करना ” है
विश्व का पहला परिवार कौन सा था?
द फर्स्ट फ़ैमिली भी ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफ़रेंसिस जीवाश्मों का एक संग्रह है, जिसे इथियोपिया के हैदर में "333" साइट पर खोजा गया है, जो एक अन्य प्रसिद्ध ए अफ़रेंसिस, लुसी के स्थान के पास है। A. afarensis को पहला अभ्यस्त द्विपाद होमिनिड और होमो सेपियन्स का प्रत्यक्ष पूर्वज माना जाता है।
अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस पर हम क्या कर सकते हैं?
यह दिन देश के विभिन्न संगठनों द्वारा मनाया जाता है जहां संगठन के सदस्य और साथ ही उनके परिवार के सदस्य अलग-अलग कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। अलग-अलग कंपनियां हर साल अपने कर्मचारियों के परिवारों को कंपनी के कामकाज के साथ परिचित कराने और उन्हें शेष कर्मचारियों से मेल-जोल बढ़ाने के लिए इस दिवस का आयोजन करती हैं।
परिवार क्यों बनाया जाता है?
सभी समाजों में बच्चों का जन्म और पालन पोषण परिवार में होता है। बच्चों का संस्कार करने और समाज के आचार व्यवहार में उन्हें दीक्षित करने का काम मुख्य रूप से परिवार में होता है। इसके द्वारा समाज की सांस्कृतिक विरासत एक से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती है। व्यक्ति की सामाजिक मर्यादा बहुत कुछ परिवार से ही निर्धारित होती है।
परिवार कितने प्रकार के होते हैं?
हमारे सौतेले परिवार हैं; एकल परिवार; दो अविवाहित भागीदारों के नेतृत्व वाले परिवार, विपरीत लिंग या समान लिंग के; परिवार जिसमें एक पीढ़ी से एक या अधिक परिवार के सदस्य शामिल हैं; दत्तक परिवार; पालक परिवार; और ऐसे परिवार जहां बच्चों का पालन-पोषण उनके दादा-दादी या अन्य रिश्तेदारों द्वारा किया जाता है।
संख्या का सबसे बड़ा परिवार कौन होता है?
मिजोरम के रहने वाले इस चाना परिवार को दुनिया का सबसे बड़ा परिवार कहा जा रहा है। इस परिवार में 181 सदस्य हैं जो 100 कमरों के एक घर में एक साथ रहते हैं। इस परिवार के मुखिया हैं जिओना चाना जिनकी 39 पत्नियां, 94 बच्चे, 14 बहुयें, 33 पोते-पोतियां आैर एक नन्हा सा परपोता है।
सबसे छोटा परिवार कौन सा है?
सबसे छोटे परिवार को एकाकी अथवा एकल परिवार कहते हैं। एकाकी परिवार वह परिवार होता है, जिसमें पति, पत्नी और उनके एक, दो या तीन बच्चे होते हैं। यह परिवार सबसे छोटा परिवार होता है।
मजदूरों के नाम समर्पित यह दिन 1 मई है। मजदूर दिवस को लेबर डे, श्रमिक दिवस या मई डे के नाम से भी जाना जाता है। श्रमिकों के सम्मान के साथ ही मजदूरों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने के उद्देश्य से भी इस दिन को मनाते हैं, ताकि मजदूरों की स्थिति समाज में मजबूत हो सके।
This day dedicated to the laborers is May 1. Labor Day is also known as Labor Day, Labor Day or May Day. Along with honoring the workers, this day is also celebrated for the purpose of raising voice for the rights of the workers, so that the position of the workers can be strengthened in the society.
1 मई को मजदूर दिवस क्यों मनाया जाता है? Why is Labor Day celebrated on 1st May?
अमेरिका और कनाडा की ट्रेड यूनियनों के संगठन फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनाइज्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियन ने तय किया कि मजदूर 1 मई, 1886 के बाद रोजाना 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेंगे। जब वो दिन आया तो अमेरिका के अलग-अलग शहरों में लाखों श्रमिक शोषण के खिलाफ हड़ताल पर चले गए। यहीं से बड़े श्रमिक आंदोलन की शुरुआत हुई।
The Federation of Organized Trades and Labor Unions, an organization of trade unions in the US and Canada, decided that workers would not work more than 8 hours a day after May 1, 1886. When that day came, lakhs of workers in different cities of America went on strike against exploitation. It was from here that the big labor movement started.
भारत में पहली बार मजदूर दिवस कब मनाया गया? When was Labor Day celebrated for the first time in India?
भारत (India) में सबसे पहले मजदूर दिवस 1923 में वामपंथियों ने चेन्नई में मनाया था. इसके बाद से देश के कई मजदूर संगठन ने मई दिवस को अपनाया और आज देश में एक मई को श्रमिक दिवस मनाया जाता है
The first Labor Day in India was celebrated by the leftists in Chennai in 1923. Since then, many labor organizations of the country have adopted May Day and today Labor Day is celebrated in the country on May 1.
1 मई को क्या मनाया जाता है? What is celebrated on 1st May?
भारत ने 1 मई, 1923 को चेन्नई में मजदूर दिवस मनाना शुरू किया. इसे 'कामगार दिवस', 'कामगार दिन' और 'अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस' के रूप में भी जाना जाता है.
India started celebrating Labor Day on May 1, 1923 in Chennai. It is also known as 'Worker's Day', 'Worker's Day' and 'International Workers' Day'.
मजदूर दिवस किसने बनाया? Who created Labor Day?
यह दिन श्रमिक संघों द्वारा बनाया गया था, विशेष रूप से आठ घंटे का अभियान। यह दिन 80 से अधिक देशों में सार्वजनिक अवकाश है, जो काम के महत्व और श्रमिक आंदोलन की सफलता पर जोर देता है
The day was created by labor unions, notably the Eight-Hour Campaign. The day is a public holiday in more than 80 countries, emphasizing the importance of work and the success of the labor movement.
मजदूर दिवस को अंग्रेजी में क्या कहते हैं? What is Labor Day called in English?
International Labour Day अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस कहें या फिर श्रमिक दिवस इस दिन को हर साल 1 मई को मनाया जाता है। मज़दूर दिवस को अंग्रेज़ी में लेबर डे मे डे और वर्कर्स डे के नाम भी जाना जाता है।
International Labour Day अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस कहें या फिर श्रमिक दिवस इस दिन को हर साल 1 मई को मनाया जाता है। मज़दूर दिवस को अंग्रेज़ी में लेबर डे मे डे और वर्कर्स डे के नाम भी जाना जाता है।
मजदूरी कितने प्रकार के होते हैं? How many types of wages are there?
समय मजदूरी, जब मजदूरी दर प्रति घंटे, प्रति दिन या प्रति माह तय की जाती है। टुकड़ा मजदूरी, जब श्रमिक को किए गए काम के अनुसार भुगतान किया जाता है, और। टास्क मजदूरी, जो एक अनुबंध के आधार पर एक भुगतान है, अर्थात, एक निर्दिष्ट नौकरी खत्म करने के लिए भुगतान।
Time wages, when the wage rate is fixed per hour, per day or per month. Piece wages, when the worker is paid according to the work done, and. Task wages, which is a payment based on a contract, i.e., payment for finishing a specified job.
4/18/2023 विश्व पुरातत्व (लिगेसी /धरोहर) दिवस 18 अप्रैल | World Archeology (Legacy / Heritage) DayRead Nowविश्व विरासत दिवस या विश्व विरासत दिवस हर साल 18 अप्रैल को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इस दिन को "स्मारक और स्थलों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस" के रूप में भी जाना जाता है।
?विश्व पुरातत्व ( विरासत /धरोहर ) दिवस?
♦️ 18 अप्रैल ♦️ दुनियाभर में 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जा रहा है। दुनिया में कई अद्भुत निर्माण विरासत हैं जो वक्त के साथ जर्जर होती जा रही हैं। इनके स्वर्णिम इतिहास और निर्माण को बचाने के लिए विश्व विरासत दिवस या विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है। वैसे तो कई सारी विश्व धरोहरें हैं, जो दुनियाभर में प्रसिद्द हैं लेकिन अगर हम भारतीय विश्व धरोहरों की बात करें तो यूनेस्को ने भारत में कुल 40 विश्व धरोहरें घोषित की है। इनमें सात प्राकृतिक, 32 सांस्कृतिक और एक मिश्रित स्थल हैं। भारत में सबसे पहली बार एलोरा की गुफाओं (महाराष्ट्र) को विश्व विरासत स्थल घोषित किया था। वहीं अगर 39वीं और 40वीं विश्व विरासत की बात करें तो कालेश्वर मंदिर तेलंगाना में स्थित है। वहीं 40वां विश्व धरोहर हड़प्पा सभ्यता का शहर धोलावीरा है। वहीं यूनेस्को द्वारा घोषित सबसे ज्यादा विश्व विरासत महाराष्ट्र में है। महाराष्ट्र में पांच यूनेस्को विश्व विरासत स्थल हैं। विश्व विरासत दिवस 2023: इतिहास मानव विरासत को संरक्षित करने और संबंधित संगठनों के सभी प्रयासों को मान्यता देने के लिए हर साल 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है। स्मारकों और स्थानों पर अंतर्राष्ट्रीय परिषद (ICOMOS) 1982 को 18 अप्रैल को विश्व खड़िया दिवस घोषित किया गया। इसे 1983 में यूनेस्को महासभा द्वारा सांस्कृतिक विरासत और स्मारकों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण के उद्देश्य से आयोजित किया गया था। स्मारकों और स्थानों पर अंतर्राष्ट्रीय परिषद (ICOMOS) संगठन की स्थापना वेनिस चार्टर में निर्धारित सिद्धांतों पर की गई थी, जिसे स्मारकों और स्थानों के संरक्षण और बहाली को 1964 के अंतर्राष्ट्रीय चार्टर के रूप में भी जाना जाता है। विश्व विरासत दिवस 2023: थीम सांस्कृतिक विरासत के एक विशेष तत्व को उजागर करने के लिए हर साल विश्व विरासत दिवस के लिए एक थीम का चयन किया जाता है। इस वर्ष यह दिन "विरासत परिवर्तन" विषय पर मनाया जाएगा। यह क्रान्ति परिवर्तन को संदेश देने के महत्वपूर्ण विषय पर केंद्रित है और यह सांस्कृतिक विरासत से कैसे संबंधित है। हम भारत में विरासत दिवस कब मनाते हैं?हर साल विश्व धरोहर दिवस (World Heritage Day) 18 अप्रैल को मनाया जाता है। ये स्मारकों और स्थलों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस है। इस दिन विश्व में स्थित सभी सांस्कृतिक विरासतों की विविधता का जश्न मनाया जाता है। भारत का पहला विश्व धरोहर स्थल कौन सा है ?
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित आगरा किला भारत का पहला विश्व धरोहर स्थल है इसे वर्ष 1983 में भारत के पहले विश्व विरासत स्थल के रूप में शामिल किया गया।भारत का पहला विश्व धरोहर स्थल कौन सा है?
हम 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस क्यों मनाते हैं?कैसे हुई इस दिन को मनाने की शुरुआत 18 अप्रैल 1982 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ मॉन्यूमेंट्स एंड साइट के द्वारा पहला विश्व धरोहर दिवस ट्यूनीशिया में सेलिब्रेट किया गया था. इसके अगले साल 18 अप्रैल 1983 में यूनेस्को महासभा की ओर से इसे मान्यता दे दी गई. ताकि लोग अपनी सांस्कृतिक विरासत को लेकर जागरुक हो सकें वर्तमान में कुल कितने विश्व विरासत स्थल है
अब तक (जुलाई 2021 तक) पूरी दुनिया में लगभग 1154 स्थलों को विश्व विरासत स्थल घोषित किया जा चुका है जिसमें 897 सांस्कृतिक, 218 प्राकृतिक, 39 मिले-जुले और 138 अन्य स्थल हैं। उल्लेखनीय है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे की भूमिका महत्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी। गुरिल्ला युद्ध के श्रेष्ठ संचालक, महान देश-भक्त, अमर बलिदानी तात्या टोपे की शहादत 18 अप्रैल 1859 को हुई।
तात्या टोपे भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी में से एक गिने जाते हैं। भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने में उनकी अहम भूमिका रही है। 1857 की क्रांति में अहम भूमिका निभाने वाले तात्या टोपे के प्रयासों को आज भी याद किया जाता है।
उनकी युद्ध करने की नीति और चतुराई से वह अक्सर अंग्रेजों के चुंगल में आने से बच जाते थे। एक जगह से युद्ध में नाकामयाब होने पर वह दूसरे युद्ध की तैयारी में जुट जाते थे। इस रवैये से अंग्रेजों का नाक में दम निकल गया था।
तात्या टोपे ने अपने संपूर्ण जीवन में अंग्रेजों के खिलाफ करीब 150 युद्ध पूरी वीरता के साथ लड़े थे। इस दौरान युद्ध में उन्होंने करीब 10 हजार सैनिकों को मार गिराया था। 15 अप्रैल को तात्या टोपे का कोर्ट मार्शल किया गया था। जिसमें उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 18 अप्रैल को तात्या टोपे को सायं 5 बजे भारी भीड़ के बीच बाहर लाया गया। सैंकड़ों की तादाद में मौजूद लोगों के बीच उन्हें फांसी की सजा दी गई। हालांकि फांसी के दौरान तात्या के टोपे के चेहरे पर किसी तरह की शिकंज या निराशा के भाव नहीं थे। फांसी के दौरान उनका चेहरा दृढ़ता से भरा दिख रहा था। 4/1/2023 1 अप्रैल से जुड़ा भारतीय इतिहास (History of 1 April) | नौवें गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल 1621Read Now
1 अप्रैल का दिन भारतीय इतिहास में बेहद खास माना जाता है क्योंकि इस दिन भारत की राजधानी दिल्ली को घोषित किया गया, भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई। इसके अलावा, 1 अप्रैल 1936 को एक अलग प्रांत बनने की याद में हर साल 1 अप्रैल को ओडिशा स्थापना दिवस भी मनाया जाता है।
?नौवें गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल 1621?
गुरु तेग़ बहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621 को अमृतसर, पंजाब मे हुआ था। उनके पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह और माता का नाम नानकी देवी था। वे अपने माता – पिता की पाँचवीं संतान थे। उनका बचपन का नाम त्यागमल था।
गुरु तेग़ बहादुर जी सिक्खों के नौवें गुरु थे। गुरु तेगबहादुरजी को प्रेम से कहा जाता है- ‘हिन्द की चादर’ भी कहा जाता है। उनकी बहुत सी रचनाएँ ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं। उन्होंने शुद्ध हिन्दी में सरल और भावयुक्त ‘पदों’ और ‘साखी’ की रचनायें की। तेग़ बहादुर सिंह 20 मार्च, 1664 को सिक्खों के गुरु नियुक्त हुए थे और 24 नवंबर, 1675 तक गद्दी पर आसीन रहे। तेग़ बहादुर सिंह 20 मार्च, 1664 को सिक्खों के गुरु नियुक्त हुए थे और 24 नवंबर, 1675 तक गद्दी पर आसीन रहे।
गुरु तेग़ बहादुर जी की बहुत सी रचनाएँ ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं। उन्होंने शुद्ध हिन्दी में सरल और भावयुक्त ‘पदों’ और ‘साखी’ की रचनायें की। सन् 1675 में गुरु जी धर्म की रक्षा के लिए अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध अपने चार शिष्यों के साथ धार्मिक और वैचारिक स्वतंत्रता के लिए शहीद हो गए।
उनके अद्वितीय बलिदान ने देश की ‘सर्व धर्म सम भाव’ की संस्कृति को सुदृढ़ बनाया और धार्मिक, सांस्कृतिक, वैचारिक स्वतंत्रता के साथ निर्भयता से जीवन जीने का मंत्र भी दिया। गुरु तेग़ बहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहाँ उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए। आध्यात्मिकता, धर्म का ज्ञान बाँटा। रूढ़ियों, अंधविश्वासों की आलोचना कर नये आदर्श स्थापित किए। उन्होंने परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएँ बनवाना आदि कार्य भी किए। इन्हीं यात्राओं में 1666 में गुरुजी के यहाँ पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ। जो दसवें गुरु- गुरु गोविंद सिंह बने। बलिदान
24 नवम्बर 1675 को दिल्ली के चाँदनी चौक पर गुरु तेग़ बहादुर जी का शीश काट दिया गया। गुरु तेग़ बहादुरजी की याद में उनके ‘शहीदी स्थल’ पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा ‘शीश गंज साहिब’ है।
4/1/2023 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक सरसंघचालक के.बी. हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889Read Nowभारत मां के इस सपूत का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर स्थित एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 13 साल की उम्र में प्लेग संक्रमण की वजह से केशव ने अपने माता-पिता को खो दिया था। लेकिन यहां से उनकी कहानी की शुरुआत नहीं होती है। उनकी कहानी की शुरुआत तो 1908 के बाद आरंभ होती है।डॉ केशव बलिराम हेडगेवार : खिलाफत आंदोलन, नमक सत्याग्रह में गए थे जेल वर्ष 1925 में विजयदशमी के दिन हुई थी संघ की स्थापना नमक आंदोलन में किसी भी संघ कार्यकर्ता को हिस्सा लेने से किया था 1933 में कांग्रेस कमेटी ने कांग्रेसियों को आरएसएस से दूरी बनाने को कहा हिंदू संस्कृति, हिंदुस्तान की धड़कन है। इसलिए ये साफ है कि अगर हिंदुस्तान की सुरक्षा करनी है तो पहले हमें हिंदू संस्कृति को संवारना होगा। आरएसएस की वेबसाइट में दृष्टि और दर्शन के अंतर्गत लिखा गया यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार का है। इस वजह से हो गए थे स्कूल से बर्खास्त
1908 के आस-पास की बात है। केशव पुणे में स्थित हाई स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे। एक दिन उन्होंने वंदेमातरम गाना गाया और इस वजह से उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया।
क्योंकि उस दौरान वंदेमातरम गाना ब्रिटिश सरकार के सर्कुलर का उल्लंघन माना जाता था। इसके बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और 1915 में वो डॉक्टर के रूप में नागपुर लौटे। लोकमान्य तिलक से प्रभावित होकर कांग्रेस के आंदोलन में लिया हिस्सा
संघ के अनुसार, डॉक्टर बनने के पीछे केशव का उद्देश्य कभी भी शासकीय सेवा में प्रवेश लेना या अपना अस्पताल खोलकर पैसा कमाना नहीं था।
उनका तो एकमात्र ध्येय, भारत का स्वातंत्र्य ही था। अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने लोकमान्य तिलक से प्रेरणा लेकर और प्रभावित होकर वर्ष 1916 में कांग्रेस के जन-आंदोलन से जुड़ गए। डॉ. हेडगेवार ने 1920 में नागपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन का पूरा जिम्मा संभाला था। इस वजह से ब्रिटिश सरकार ने हेडगेवार को दी थी सश्रम कारावास की सजा
तत्पश्चात डॉ हेडगेवार ने अंग्रेजों के खिलाफ उग्र भाषण देना शुरू किया। भाषण के दौरान जब उन्होंने, ‘स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और उसे मैं प्राप्त करके ही रहूंगा’, की घोषणा की तब जनमानस में चेतना की एक प्रबल लहर का निर्माण हुआ।
यह सब देखकर ब्रिटिश सरकार ने उनपर भाषणबंदी का नियम लागू कर दिया। किन्तु डॉक्टर ने उसे मानने से इनकार कर दिया और अपना भाषणक्रम चालू रखा। उनके इस बर्ताव पर अंग्रेजी सरकार ने मामला दर्ज कर एक वर्ष के लिए सश्रम कारावास की सजा दे दी। वर्ष 1925 में विजयदशमी के दिन ही हेडगेवार ने संघ की स्थापना की।
1930 में नमक सत्याग्रह से जुड़ गए थे और इस दौरान वे जेल भी गए थे।
नतीजतन साल 1933 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने प्रस्ताव पास कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को आरएसएस, हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के साथ कोई भी संबंध बनाने से मना कर दिया। 21 जून, 1940 को बीमारी के चलते डाॅ हेडगेवार का देहावसान हो गया। विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस world civil Defence day दिवस 1 मार्च
हर साल एक मार्च को दुनिया भर में विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस मनाया जाता है. इसकी शुरुआत 1990 में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक सुरक्षा संगठन (ICDO) ने की थी.
नागरिक सुरक्षा दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य नागरिक सुरक्षा के लिे बलिदान देने वालों को याद करना और लोगों तक नागरिक सुरक्षा के महत्व को पहुंचाना है. कारी अंतर सरकारी संगठन है. जो सुविधाओं और पर्यावरण की रक्षा की दिशा में काम करता है. इसके साथ ही लोगों को बढ़ने और सुरक्षित रहने की दिशा में जरूरी मदद पहुंचाता है. 59 देश आईसीडीओ के सदस्य हैं. जो उन देशों में नागरिक सुरक्षा बलों के मानव संसाधन प्रबंधन में सुधार की दिशा में काम करते हैं. विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस का उद्देश्य:
विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस का उद्देश्य आपदा के दौरान नागरिक सुरक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में लोगों को अधिक जागरूक करना है. यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.
क्योंकि यह नागरिकों को आपदा की तैयारी, बचाव और आत्म-सुरक्षा के बारे में जागरूक करता है. विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस के आयोजन का उद्देश्य आपातकालीन स्थितियों में सहायता के लिए नागरिकों को बेहतर ढंग से तैयार करना और आपदा के जोखिम को कम करने के लिए नागरिक सुरक्षा, आपातकालीन तैयारी और संकट प्रबंधन के बारे में सार्वजनिक ज्ञान बढ़ाना है विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस की थीम:
विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस 1 मार्च 2023 को मनाया जाता है. जिसका इस साल का थीम 'भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा और सुरक्षा के लिए दुनिया के अग्रणी उद्योग विशेषज्ञों को एकजुट करना' है.
विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस 2023 का इतिहास:
युद्ध या जंग के समय में नागरिक आबादी की सुरक्षा एक बड़ी समस्या होती है. जिस दिशा में 28 मई, 1931 को, फ्रांसीसी सर्जन-जनरल जॉर्ज सेंट-पॉल ने पेरिस में "जिनेवा ज़ोन" एसोसिएशन की स्थापना की थी.
जिस जगह को मुख्य रूप से महिलाएं, बच्चे, वृद्ध, साथ ही बीमार और विकलांग, संघर्ष के दौरान आश्रय लेने के लिए सुरक्षित बनाया गया. आने वाले दिनों में कई दूसरे देशों ने भी ऐसी ही पहल की. 2/28/2023 28 February Death anniversary of Dr. Rajendra Prasad, the first President of the countryRead Nowदेश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पुण्यतिथि 28 फरवरी
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद सादगी पसंद, दयालु एवं निर्मल स्वभाव के व्यक्ति थे। उनका जन्म 3 दिसंबर 1884 को हुआ था।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद चाहे धर्म हो, वेदांत हो, साहित्य हो या संस्कृति, शिक्षा हो या इतिहास, राजनीति, भाषा, वे हर स्तर पर अपने विचार व्यक्त करते थे।
उनकी स्वाभाविक सरलता के कारण वे अपने ज्ञान-वैभव का प्रभाव कभी प्रतिष्ठित नहीं करते थे। 'सादा जीवन, उच्च विचार' के अपने सिद्धांत को अपनाने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद अपनी वाणी में हमेशा ही अमृत बनाए रखते थे।
आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलने के साथ ही राजेंद्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। वर्ष 1957 में वे दोबारा राष्ट्रपति चुने गए।
इस तरह वे भारत के एकमात्र राष्ट्रपति थे, जिन्होंने लगातार दो बार राष्ट्रपति पद प्राप्त किया था। उन्हें सन् 1962 में अपने राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से भी नवाजा गया।
बाद में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और अपना शेष जीवन पटना के निकट एक आश्रम में बिताया, जहां 28 फरवरी, 1963 को बीमारी के कारण उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पुण्यतिथि 28 फरवरी
भारत के प्रथम राष्ट्रपति का चुनाव कब हुआ था?
भारत में कितने राष्ट्रपति हैं?
1950 में भारतीय संविधान को अपनाने के साथ भारत को गणतंत्र घोषित किए जाने के बाद से भारत के 15 राष्ट्रपति पद की स्थापना की गई है।
भारत के राष्ट्रपति का वेतन कितना है?
भारत के राष्ट्रपति को मासिक वेतन 1,050,000 रुपए है. जबकि 60,000 रुपये के कुल भत्तों और 45,000 रुपये के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के भुगतान के अलावा, वह 50,000 रुपये की मासिक आधार आय अर्जित करते है
हर साल 28 फरवरी को दुर्लभ बीमारी दिवस (Rare Disease Day) मनाया जाता है. लेकिन इस बार दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए एक अच्छी खबर सामने आई है. दरअसल, स्वास्थ्य मंत्रालय ने दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को सरकारी मदद देना शुरू कर दिया है.
दुर्लभ रोग दिवस एक विश्वव्यापी स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम है, जो आम तौर पर हर साल फरवरी के आखिरी दिन या फरवरी के आखिरी दिन के करीब मनाया जाता है,
जिसका उद्देश्य दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित लोगों को एक साथ लाना और एक समुदाय बनाना है जिसमें उनकी दुर्लभताएं हैं के बारे में जागरूकता, उनकी स्थिति, उनके निदान और उनके उपचार पर चर्चा की जाती है। इस साल 2023 में विश्व दुर्लभ रोग दिवस 28 फरवरी को मंगलवार को मनाया जा रहा है।
हालाँकि, सभी बीमारियाँ अत्यधिक दर्द से पीड़ित हो सकती हैं, दुर्लभ बीमारियाँ सामान्य की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करती हैं।
इलाज के लिए उचित सहयोग नहीं देने के अपराध क्षेत्र के कारण परिवार और देखभाल करने वाले भी प्रभावित होते हैं। इन बीमारियों में अक्सर गंभीर, प्रगतिशील बीमारी और विकलांगता शामिल होती है और समय से पहले मृत्यु हो सकती है। इसके अलावा, दुर्लभ रोग अक्सर एक से अधिक अंग प्रणाली को प्रभावित करते हैं और इसके लिए संबद्ध अनुसंधान की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, बहुत दुर्लभ होने के कारण, सामान्य (गैर-दुर्लभ) बीमारियों के साथ देखे गए अतिव्यापी लक्षण के कारण उपचार करने वाली स्वास्थ्य सेवा टीम अक्सर गलत निदान करती है। सभी कारणों से, दुर्लभ संस्थाओं के बारे में जागरूकता और उनके अनुसंधान के लिए धन के संलग्नता से अनुवाद शोध में सुधार से बहुत लाभ होगा। दुर्लभ रोग दिवस (आरडीडी) का इतिहास
EURORDIS द्वारा आयोजित और 65+ राष्ट्रीय संबद्धता संगठन पार्टनर द्वारा समन्वित, दुर्लभ रोग दिवस का उद्देश्य 2008 से अपने संबंधित देशों में विभिन्न दुर्लभ बीमाओं के बारे में जागरूकता जागरूकता फैलाना है।
नेशनल सेंटर फॉर एडवांसिंग ट्रांसलेशनल सौदे (NCATS) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) क्लिनिकल सेंटर 2011 से इन अभियानों में शामिल और आकर्षक थे। तब से, दुर्लभ रोग के इस वैश्विक बाल ने लोगों को प्रभावित किया और उनके जीवन को प्रभावित किया। देखभाल करने वाले और नए उपचारों के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान की प्रगति द्वारा उपन्यास सैट को संदेश देते हुए एनआईएच सहयोग के बारे में जागरूकता वृद्धि।
दुर्लभ रोग दिवस की शुरुआत किसने की? दुर्लभ रोग दिवस EURORDIS द्वारा बनाया गया था और इसे पहली बार 2008 में राष्ट्रीय गठबंधन परिषद के साथ लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य दुर्लभ बीमारियों को सुर्खियों में लाने में मदद करने के लिए एक वैश्विक जागरूकता अभियान बनाना था। तारीख के लिए सबसे दुर्लभ दिन 29 फरवरी चुना गया और एक लोगो बनाया गया।
दुर्लभ रोग दिवस का उद्देश्य क्या है?
दुर्लभ रोग दिवस का लक्ष्य दुर्लभ बीमारियों के साथ रहने वाले लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए शोधकर्ताओं और निर्णय निर्माताओं को प्रोत्साहित करते हुए दुर्लभ बीमारियों के बारे में आम जनता के बीच ज्ञान में सुधार करना है । नेशनल साइंस डे 2023: कब और क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय विज्ञान दिवस, जानें थीम, इतिहास और महत्व
भारत में प्रत्येक वर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस एक विशेष उत्सव के रूप मनाया जाता है। यह उस दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है जब भारतीय भौतिक विज्ञानी सर सी. वी. रमन ने एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज की थी। आज, राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
रोजमर्रा के जीवन में विज्ञान के महत्व को प्रदर्शित करता है और नियमित लोगों को यह देखने का अवसर देता है कि कैसे वैज्ञानिक नवाचार जीवन को बेहतर बना सकते हैं और सामाजिक विकास को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
इस दिन को मनाने के लिए कई वैज्ञानिक केंद्र और संस्थान वाद-विवाद, वैज्ञानिक प्रतियोगिताएं, व्याख्यान, टीवी शो और यहां तक कि सार्वजनिक भाषण भी आयोजित करते हैं। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2023 के बारे मेंराष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2023 की थीम 'वैश्विक भलाई के लिए वैश्विक विज्ञान' घोषित की गई है।
भारत सरकार ने 1986 में 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (एनएसडी) के रूप में नामित किया था।
इस दिन सर सी.वी. रमन ने 'रमन प्रभाव' की खोज की घोषणा की जिसके लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
रमन प्रभाव क्या है?
रमन प्रभाव प्रकाश की तरंग दैर्ध्य में परिवर्तन है जो तब होता है जब अणुओं द्वारा प्रकाश किरण को विक्षेपित किया जाता है।
जब प्रकाश की एक किरण किसी रासायनिक यौगिक के धूल रहित, पारदर्शी नमूने से होकर गुजरती है, तो प्रकाश का एक छोटा अंश आपतित (आने वाली) किरण के अलावा अन्य दिशाओं में निकलता है। इस बिखरे हुए प्रकाश का अधिकांश भाग अपरिवर्तित तरंग दैर्ध्य का होता है। हालांकि, एक छोटे हिस्से की तरंग दैर्ध्य घटना प्रकाश से भिन्न होती है; इसकी उपस्थिति रमन प्रभाव का परिणाम है। कौन थे सीवी रमन?
चंद्रशेखर वेंकट रमन तमिलनाडु के एक भौतिक विज्ञानी थे। प्रकाश प्रकीर्णन के क्षेत्र में उनके काम ने उन्हें 1930 में भौतिकी के लिए नोबेल पुरस्कार दिया। इस घटना को रमन प्रभाव के रूप में जाना जाता था। 1954 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस समयरेखा 1923 - ए थ्योरी इज़ बॉर्न - एडॉल्फ स्मेकल, एक ऑस्ट्रियाई भौतिक विज्ञानी, प्रकाश प्रभाव के प्रकीर्णन का वर्णन करता है, लेकिन यह अभी भी एक सिद्धांत है। 1928- टाइमिंग इज एवरीथिंग- रमन द्वारा अपने अब तक के प्रसिद्ध सिद्धांत को प्रकाशित करने से एक सप्ताह पहले, सोवियत भौतिक विज्ञानी ग्रिगोरी लैंड्सबर्ग और लियोनिद मैंडेलस्टम क्रिस्टल में प्रकाश प्रभाव के बिखरने का निरीक्षण करते हैं, लेकिन उन्होंने रमन की खोज के महीनों बाद अपने पेपर को प्रकाशित किया। जिस वजह से उनकी खोज को मान्यता प्राप्त नहीं है। 1928 - वी हैव ए नेम - बर्लिन विश्वविद्यालय के भौतिकशास्त्री पीटर प्रिंगशाइम ने रमन के बिखरे हुए प्रकाश के सिद्धांत का पूरी तरह से अध्ययन और पुनरुत्पादन किया, इस प्रभाव को रमन प्रभाव कहा। 1986 - एक प्रस्ताव आया - विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार के लिए राष्ट्रीय परिषद (एन.सी.एस.टी.सी.) ने विज्ञान और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार से 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस घोषित करने के लिए कहा।
28 फरवरी, 1987 - पहला राष्ट्रीय विज्ञान दिवस - राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद विशेष राष्ट्रीय विज्ञान लोकप्रियता पुरस्कारों की घोषणा करके इस आयोजन को बढ़ावा देती है, जो विजेताओं को छात्रवृत्ति, अनुदान और अन्य पुरस्कार प्रदान करते हैं।
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का इतिहास चंद्रशेखर वेंकट रमन, जिन्हें आमतौर पर सी.वी. के नाम से जाना जाता है वह एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे। उन्होंने बहुत जल्दी स्कूल की पढ़ाई पूरी की, 11 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की और 13 वर्ष की उम्र में अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी की, जिसके बाद 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 1917 में कलकत्ता के एक कॉलेज में अंततः उन्हें एक शिक्षण पद की पेशकश के बाद ही छोड़ना पड़ा। चार साल बाद, यूरोप की यात्रा पर, रमन ने पहली बार हिमखंडों और भूमध्य सागर के आकर्षक नीले रंग को देखा। वह यह पता नहीं लगा सके कि यह रंग कैसे प्रकट हुआ और उस समय के प्रचलित सिद्धांत का खंडन करने के लिए निकल पड़ें, जिसमें बताया गया था कि सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने पर बिखरता है, जिससे विभिन्न रंग दिखाई देते हैं। रमन ने स्वयं प्रयोग करना शुरू किया, उन्होंने पता लगाया कि जब प्रकाश किसी पारदर्शी पदार्थ से होकर गुजरता है तो कुछ प्रकाश अलग-अलग दिशाओं में बिखरता हुआ निकलता है। 1928 में प्रकाशित इन परिणामों ने वैज्ञानिक समुदाय को इतना प्रभावित किया कि रमन को उसी वर्ष नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की पूरी उम्मीद थी। उस वर्ष और अगले वर्ष उनकी अनदेखी की गई। हालांकि, अपनी खोज पर रमन का विश्वास डगमगाया नहीं और उन्हें खुद पर इतना यकीन था कि उन्होंने दो टिकट बुक किए - एक अपने लिए और एक अपनी पत्नी के लिए - स्टीमशिप पर जुलाई में स्टॉकहोम के लिए जब नोबेल पुरस्कार की घोषणा नवंबर में होगी। उन्होंने उस वर्ष भौतिकी में नोबेल पुरस्कार जीता, अपने काम और भारतीय वैज्ञानिक समुदाय पर ध्यान आकर्षित किया। कब और क्यों मनाया जाता है केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस 2023, जानें थीम, इतिहास और महत्व के बारे मेंकेंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के प्रयासों का सम्मान करने के लिए हर साल 24 फरवरी को केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस मनाया जाता है। यह दिन सीबीईसी सदस्यों के काम को स्वीकार करने और उन्हें अधिक दक्षता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस केंद्रीय उत्पाद शुल्क और नमक अधिनियम की याद दिलाता है, जिसे 24 फरवरी 1944 को पारित किया गया था।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के काम की सराहना करने के लिए मनाया जाता है। गौरतलब है कि सीबीआईसी राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन काम करता है। यह संगठन सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क आदि के मामलों के संग्रह और प्रबंधन से संबंधित है।
सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क संग्रह के सुचारू संचालन के लिए सीबीआईसी की भूमिका केंद्रीय है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस सीबीआईसी की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करने के बारे में है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस 2023: सीबीईसी से जुड़ी प्रमुख बातें
यह अपने सहायक संस्थानों के लिए प्रबंधकीय शक्ति भी है, जिसमें कस्टम हाउस, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर आयोग की दरें, साथ ही केंद्रीय राजस्व नियंत्रण प्रयोगशालाएं शामिल हैं।
सीमा शुल्क अधिनियम 1962, केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम 1944, सीमा शुल्क अधिनियम, 1975, और सेवा कर अधिनियम सीबीईसी बोर्ड के लिए चिंता का प्राथमिक क्षेत्र हैं।
जीएसटी कार्यान्वयन चरण जीएसटी के कार्यान्वयन से संबंधित अधिनियमों द्वारा विनियमित बोर्ड की गतिविधियों को देखता है, जो 1 जुलाई 2017 को लागू होगा और कार्यान्वयन अवधि लिए प्रभावी रहेगा।
सीबीईसी सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क करों के साथ-साथ सेवा कर संग्रह और लेवी के क्षेत्रों में नीति विकास के लिए जिम्मेदार है।
24 फरवरी को केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड की स्थापना की मान्यता में, तब से सीबीईसी ने प्रत्येक वर्ष केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस मनाया है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस नमक अधिनियम के पारित होने का जश्न मनाता है, जिसे 24 फरवरी, 1944 को कानून में हस्ताक्षरित किया गया था।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस: इतिहास
केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस का इतिहास 1944 में देखा जा सकता है जब सरकार द्वारा केंद्रीय उत्पाद शुल्क और नमक अधिनियम पारित किया गया था। नमक सरकार के लिए राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है और पारगमन कर, उत्पाद शुल्क और इसी तरह के करों के रूप में एकत्र किया गया है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस इस अधिनियम के पारित होने की याद दिलाता है।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क और नमक अधिनियम 1944 से पहले, प्रत्येक राज्य के पास कर संग्रह और प्रशासन का अपना तरीका था। अधिनियम ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क और नमक के कानूनों को समेकित और सुव्यवस्थित किया और राजस्व संग्रह प्रक्रिया को और अधिक कुशल बनाया। केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस इस महत्वपूर्ण अधिनियम को चिन्हित करता है और इसके महत्व पर प्रकाश डालता है।
क्या है सीबीआईसी?
सीबीआईसी भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के तहत राजस्व विभाग का एक हिस्सा है। बोर्ड प्रशासनिक कार्य के लिए जिम्मेदार है। सीबीआईसी के बारे में कुछ और तथ्य इस प्रकार हैं-
इसमें केंद्रीय राजस्व नियंत्रण प्रयोगशाला, केंद्रीय जीएसटी आयुक्तालय, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और कस्टम हाउस शामिल हैं।
बोर्ड सीमा शुल्क से संबंधित कानूनों और नीतियों को अधिक कुशलता से तैयार करने और लागू करने में सरकार की सहायता करता है।
यह जीएसटी (माल और सेवा कर), सीमा शुल्क, सेवा कर, और अन्य लेवी जैसे अप्रत्यक्ष करों का समय पर संग्रह सुनिश्चित करता है। सीबीआईसी अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को फ्लैट-पैनल टीवी, आग्नेयास्त्रों और अन्य जैसे प्रतिबंधित उत्पादों को देश में लाने से भी प्रतिबंधित करता है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड की भूमिका
1944 में इस दिन सीबीआईसी की स्थापना के उपलक्ष्य में हर साल 24 फरवरी को केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस मनाया जाता है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड सीबीआईसी को पहले केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड सीबीईसी के रूप में जाना जाता था। सीबीआईसी एक सरकारी संगठन है जो राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय के तहत काम करता है।
भारत में सीबीआईसी की भूमिका क्या है?
इस संगठन का प्राथमिक उद्देश्य माल निर्माण व्यवसाय में भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास करना है।
सीबीआईसी व्यवसाय से संबंधित केंद्रीय उत्पाद शुल्क कानूनों को सर्वोत्तम संभव सीमा तक लागू करने से भी संबंधित है।
यह सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, और बहुत कुछ के क्षेत्र में नीति निर्माण से भी संबंधित है।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस भारत में इस संगठन के सम्मान में मनाया जाने वाला एक वार्षिक उत्सव है। केंद्रीय माल और सेवा कर और आईजीएसटी, तस्करी की रोकथाम और सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, केंद्रीय माल और सेवा कर, आईजीएसटी और नारकोटिक्स से संबंधित मामलों का प्रशासन सीबीआईसी के दायरे में है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस का महत्व
केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस पर, सीबीआईसी का लक्ष्य भारत के नागरिकों को विभिन्न अप्रत्यक्ष कर कानूनों से अवगत कराना है जो भारत में विनिर्माण उद्योग पर लागू होते हैं। केन्द्रीय उत्पाद शुल्क दिवस के महत्व के निम्नलिखित कारण हैं
सीबीआईसी विभाग सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार से लड़ने की कोशिश करता है।
सीबीआईसी विभाग और भारत के नागरिकों के बीच एक सामंजस्यपूर्ण और परामर्शी संबंध बनाने की कोशिश करता है।
सीबीआईसी यह सुनिश्चित करता है कि देश की सीमाओं के पार तस्करी को रोका जाए, मुख्य रूप से अवैध पदार्थों की तस्करी। सामाजिक न्याय का विश्व दिवस हर साल 20 फरवरी को मनाया जाता है.
चाहें आप किसी भी जाति, धर्म, लिंग, गरीब हो या अमिर हो न्याय सभी के लिए एक बराबर होना चाहिए, ये एक अधिकार है जो अपने प्रति सभी को एक भी नजर से देखता है।
सामाजिक न्याय के प्रति दुनिया के सभी लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष सामाजिक न्याय दिवस मनाया जाता है।
इस दिवस सबसे पहले वर्ष 2009 में मनाया गया था और तब से आज तक लागातार मनाया जाता है। उस हिसाब से देखा जाए तो इस वर्ष यानी 2023 में 15वां विश्व सामाजिक न्याय दिवस मनाया जा रहा है।
जिसे प्रतिवर्ष के नई थीम यानी विषय के साथ मनाया जाता है। इस साल इस दिवस को मनाने के लिए "सामाजिक न्याय के लिए बाधाओं पर काबू पाना और अवसरों को उजागर करना" थीम को तय किया गया है।
विश्व सामाजिक न्याय दिवस को मनाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य किसी भी प्रकार के भेदभाव को खत्म करके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी को साथ लाकर एक एकिकृत समाज का निर्माण करना है।
इस दिवस के माध्मय से स्कूलों, कॉलेजों के साथ-साथ कार्यालयों और अन्य स्थानों के लोगों सामाजिक न्याय को लेकर जागरूकता पैदा करना है, जिसके लिए कई प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। आइए आपको बताएं इस दिवस के 20 फरवरी को क्यों मनाया जाता है, इसका इतिहास और महत्व और क्या है?20 फरवरी को क्यों मनाया जाता है विश्व सामाजिक न्याय दिवस
अमेरिका में श्वेत अश्वेत का भेदभाव खत्म करने के लिए सबसे पहले आंदोलन कि शुरुआत वर्ष 1950 से 60 के बीच की गई थी। यहां से आप समझ पाएंगे कि विश्व के हर देश में रहने वाले लोगों ने एक समय पर किसी न किसी प्रकार से भेदभाव सहा है,
जिसे खत्म करने के लिए और लोगों में सामाजिक न्याय को लेकर जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए ये दिवस महत्वपूर्ण है। लेकिन इस दिवस की शुरुआत कैसे हुई और किस प्रकार ये अस्तित्व में आया ये सभी के लिए जानना आवश्यक है। तो आपको बता दें कि वर्ष 1995 में डेनमार्क में स्थित कोपेनहेगन में सर्वप्रथम समाजिक विकास के लिए एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। जो बाद में कोपेनहेगन घोषणा और कार्य योजना के रूप में सामने लाया गया। इस सम्मेलन में 100 से अधिक राजनीतिक नेता शामिल हुए थे, जिन्होंने गरीबी उन्मूलन, रोजगार प्रदान करने और सुरक्षित और न्यायपूर्ण समाज को बनाने का एक संकल्प लिया। 2005 में कोपेनहेगन घोषणा और कार्य योजना की समीक्षा की गई।
इसके दो साल बाद ही यानी की वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सामाजिक न्याय की भावना और आवश्यकता को समझा और 26 नवंबर 2007 को आधिकारिक घोषणा की और कहा कि महासभा के 60वें सत्र से शुरू होकर 20 फरवरी को विश्व समाजिक न्याय दिवस मनाया जाएगा।
10 जून 2008 को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा निष्पक्ष वैश्वीकरण के लिए सामाजिक न्याय पर आईएलओ की घोषणा को अपनाया और उसके बाद 20 फरवरी 2009 को पहला विश्व सामाजिक न्याय दिवस मनाया गया और आज तक लागातार मनाया जा रहा है। विश्व समाजिक न्याय दिवस का उद्देश्य
विश्व समाजिक न्याय दिवस को मानाने का उद्देश्य सतत विकास की प्राप्ती करना है, रोजगार के अच्छे अवसरों को बढ़ावा देना है, रोजगार में लिंग भेदभाव की स्थिति को कम करना है, गरीबी उन्मूलन, सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा, लैंगिक समानता प्रदान करना और सामाजिक भलाई के लिए कार्य कर सभी को न्याय दिलवाना है।
न्याय सभी के लिए समान होना चाहिए और इसमें किसी भी प्रकार की भेदभाव की स्थिति न हो इस बात की भी खास ख्याल रखा जाता है।
भारत में कई हर रंग, धर्म और जाति के व्यक्ति रहते हैं, लेकिन भारतीय संविधान के माध्यम से सभी को समान अधिकार प्राप्त है और संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारत के सभी नागरिकों के लिये राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक न्याय के साथ स्वतंत्रता के सभी रूप शामिल हैं।
ताकि भारत को एक आदर्श समाज के रूप में व्यक्त किया जा सकें और सभी लोगों यहां शांतिपूर्ण ढंग से रह सकें। विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2023 : थीम
प्रतिवर्ष 20 फरवरी को विश्व सामाजिक दिवस को एक थीम के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व सामाजिक दिवस 2023 की थीम "सामाजिक न्याय के लिए बाधाओं पर काबू पाना और अवसरों को उजागर करना" तय कि गई है।
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