पुलवामा के आतंकी हमले में शहीद हुए वीर जवानों को शत शत् शत् नमन व भावपूर्ण श्रद्धांजलि ?
14 फरवरी का दिन भारत के इतिहास में काला दिन माना जाता है. क्योंकि आज के ही दिन पुलवामा हमले में देश के 40 जांबाज शहीद हो गए थे. आज पुलवामा अटैक की तीसरी बरसी है.आतंकियों ने जिस काफिले को निशाना बनाया गया था, उसमें 2500 जवान शामिल थे.
आज जम्मू कश्मीर में हुए पुलवामा हमले (Pulwama Attack) की तीसरी बरसी है. 14 फरवरी 2019 को जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग से करीब 2500 जवानों को लेकर 78 बसों में सीआरपीएफ (CRPF) का काफिला गुजर रहा था.
सड़क पर उस दिन भी सामान्य आवाजाही थी. सीआरपीएफ का काफिला पुलवामा पहुंचा ही था, तभी सड़क की दूसरे तरफ से आ रही एक कार ने सीआरपीएफ के काफिले के साथ चल रहे वाहन में टक्कर मार दी. जैसे ही सामने से आ रही एसयूवी जवानों के काफिले से टकराई, वैसे ही उसमें विस्फोट हो गया. इस घातक हमले में सीआरपीएफ के 40 बहादुर जवान शहीद हो गए.
धमाका इतना जबरदस्त था कि कुछ देर तक सब कुछ धुआं-धुआं हो गया. जैसे ही धुआं हटा, वहां का दृश्य इतना भयावह था कि इसे देख पूरा देश रो पड़ा. उस दिन पुलवामा में जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर जवानों के शव इधर-उधर बिखरे पड़े थे. चारों तरफ खून ही खून और जवानों के शरीर के टुकड़े दिख रहे थे.
जवान अपने साथियों की तलाश में जुटे थे. सेना ने बचाव कार्य शुरू किया और घायल जांबाजों को तुरंत ही अस्पताल ले जाया गया. घटना के बाद पूरे देश में हाहाकार मच गया. जैश के निशाने पर थे 2500 जवान
जवानों का काफिला जम्मू स्थित चेनानी रामा ट्रांसिट कैंप से श्रीनगर के लिए निकला था. तड़के चले जवानों को सूरज डूबने से पहले श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम स्थित ट्रांसिट कैंप में पहुंचना था. यह सफर करीब 320 किलोमीटर लंबा था
और सुबह 3:30 बजे से जवान सफर कर रहे थे. 78 बसों में 2500 जवानों को लेकर काफिला जम्मू से रवाना हुआ था. लेकिन पुलवामा में ही जैश के आतंकियों ने इन जवानों को निशाना बना लिया. जिसमें कई जवान शहीद हो गए. जवानों के इस काफिले में कई जवान छुट्टी पूरी करके ड्यूटी पर वापस लौटे थे. वहीं बर्फबारी की वजह से जो जवान श्रीनगर जाने वाले थे वो भी इसी काफिले की बसों में सवार थे. जैश सभी 2500 जवानों को निशाना बनाना चाहता था. जैश ने टेक्स्ट मैसेज भेज कर हमले की जिम्मेदारी ली थी
हमले के बाद सीआरपीएफ अधिकारी की ओर से इस हमले के बारे में जानकारी दी गई. उन्होंने उस समय बताया था कि काफिले में करीब 70 बसें थीं और इसमें से एक बस हमले की चपेट में आ गई.
काफिला जम्मू से श्रीनगर की तरफ जा रहा था. चौंकाने वाली बात यह थी कि आतंकी संगठन जैश ने टेक्स्ट मैसेज भेज कर हमले की जिम्मेदारी ली गई थी. जैश ने यह मैसेज कश्मीर की न्यूज एजेंसी जीएनएस को भेजा था. जैश ने लिया था रात्नीपोरा एनकाउंटर का बदला
पुलवामा के अवंतिपोरा से जब सीआरपीएफ जवानों को लेकर बस गुजर रही थी ठीक उसी समय एक कार बस से जा टकराई थी. यह कार पहले से ही हाइवे पर खड़ी थी. जैसे ही बस यहां पर पहुंची जोरदार धमाका हुआ.
जिस जगह पर हमला हुआ था वहां से श्रीनगर की दूरी बस करीब 33 किलोमीटर थी और काफिले को पहुंचने में बस घंटे का ही समय बचा था. धमाका इतना जोरदार था कि जवानों के शरीर के चिथड़े तक उड़ गए थे. इस हमले को जैश की ओर से लिया गया बदला माना गया था. हमले से दो दिन पहले पुलवामा के ही रात्नीपोरा इलाके में हुए एनकाउंटर में सुरक्षाबलों ने जैश के एक आतंकी को ढेर कर दिया था.
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विश्व दाल (दलहन) दिवस 2023
यह दिवस प्रत्येक वर्ष के 10 फरवरी को मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य वैश्विक भोजन के रूप में दालों (सूखी बीन्स, दाल, सूखी मटर, छोले, लूपिन) के महत्व को पहचानना है। वर्ष के उत्सव ने स्थायी खाद्य उत्पादन के हिस्से के रूप में दालों के पोषण और पर्यावरण लाभों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाई।
हर साल 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस यानी वर्ल्ड पल्स डे मनाया जाता है। इसका मकसद दलहन की पैदावार को बढ़ावा देना है। पहली बार 2016 को अंतरराष्ट्रीय दाल वर्ष घोषित किया था।
लेकिन, विश्व दलहन दिवस मनाने का सिलसिला शुरू हुआ 10 फरवरी 2018 से। इस कार्यक्रम को संयुक्त राष्ट्र प्रायोजित करता है।
दालों में कई तरह के पोषक तत्व होते हैं। इसलिए संयुक्त राष्ट्र दलहन का उत्पादन बढ़ाकर देशों से कुपोषण मिटाना चाहता है।
दालें डायबिटीज और हृदय रोग में काफी फायदा करती हैं। इनके सेवन से मोटापे जैसी बीमारियां भी दूर रहती हैं। इनमें आयरन प्रचुर मात्रा में होता है, जो रक्त संबंधी बीमारियों को दूर करता है।
दालों से पाचन तंत्र और मांसपेशियां भी बेहतर होती हैं। दालों की सबसे बड़ी खासियत होती है कि तेज आंच पर पकने के बाद भी उनके पौष्टिक तत्व सुरक्षित रहते हैं।
देश के किसानों के लिए दलहन फसलों की काफी अहमियत होती है। यह किसानों को वित्तीय तौर पर मजबूत बनाती है।
यही वजह है कि दुनिया भर की सरकारें पोषक तत्व और खाद्य सुरक्षा के लिए दालों का महत्व समझाने के लिए विश्व दलहन दिवस मनाती हैं। विश्व दलहन दिवस 2023 की थीम
वर्ष 2016 में जब दलहन के लिए अंतर्राष्ट्रीय वर्ष मनाया गया था, तब इसके लिए एक थीम का चुनाव किया गया था और तभी से इस दिवस को एक नई थीम के साथ मनाया जा रहा है।
वर्ष 2023 में विश्व दलहन दिवस मनाने के लिए "सतत भविष्य के लिए दाले" थीम का चुनाव किया गया है।
इस थीम को चुनने का मुख्य उद्देश्य लोगों के लिए आजीविका के समान अवसर पैदान करना है।
जिसमें दालों की खेती के लिए ग्रामीण महिलाओं और युवाओं को समान रोजगार के अवसर प्रदान करना हा।
10 फरवरी को देशभर में ‘राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस’ (National Deworing Day) मनाया जाता हैं।
इसके माध्यम से बच्चों के संपूर्ण स्वास्थ्य, पोषण संबंधी स्थिति, शिक्षा और जीवन गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है।
इस दिवस का शुभारंभ स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में किया गया था।
इस दिवस का उद्देश्य सरकारी/सरकारी सहायता प्राप्त/निजी स्कूलों व आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से 1 से 19 वर्ष तक के सभी बच्चों को कृमि मुक्त करना है।
गौरतलब है कि संपूर्ण विश्व में कृमि संक्रमण से सर्वाधिक प्रभावित बच्चे भारत में ही हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) ने वर्ष 2014 में यह अनुमान लगाया था कि भारत में 1-14 वर्ष के आयु वर्ग वाले 22 करोड़ से भी अधिक बच्चों को उससे खतरा है।
ज्ञातव्य है कि कृमि मनुष्य की आंतों में रहते हैं और शरीर के लिए जरूरी पोषण तत्वों को नष्ट कर देते हैं।
आज पूरा देश उनकी 126वीं जयंती मना रहा है. उनके सकारात्मक संदेश आपके मुश्किल दौर में हौसला बढ़ा सकते हैं. नेताती का जन्म 23 जनवरी 1897 हो हुआ था. बता दें, भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) की जयंती के उपलक्ष्य में 23 जनवरी को 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाने का फैसला किया है
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय
सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ। उनेक पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती दत्त था। वह भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ थे। उनकी देशभक्ति, अचल साहस और वीरता ने उन्हें एक राष्ट्रीय नायक बनाया। द्वितीय विश्व युद्ध के समय नाजी पार्टी और इंपीरियल जापान की मदद से उन्होंने अंग्रेजों से आजादी के लिए अथक प्रयास किए।
उनका नाम सुनकर हर भारतीय को गर्व महसूस होता है।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्हें अक्सर गांधीजी के साथ विचारधाराओं के टकराव का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से उन्हें वह पहचान नहीं मिली जिसके वह हकदार थे।
आईए जानते हैं सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय।
प्रोफ़ाइल
जन्म: 23 जनवरी 1897
जन्म स्थान: कटक, उड़ीसा माता-पिता: जानकीनाथ बोस (पिता) और प्रभावती देवी (मां) पत्नी: एमिली शेंकल बच्चे: अनीता बोस फाफ शिक्षा: रेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल, कटक; प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता; कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड संघ: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस; फॉरवर्ड ब्लॉक; भारतीय राष्ट्रीय सेना आंदोलन: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन
राजनीतिक विचारधारा: राष्ट्रवाद; साम्यवाद; फासीवाद-झुकाव;
धार्मिक विश्वास: हिंदू धर्म प्रकाशन: भारतीय संघर्ष (1920-1942) मृत्यु: 18 अगस्त, 1945 स्मारक: रेंक जी मंदिर टोक्यो जापान, नेताजी भवन कोलकाता भारत सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा
सुभाष चंद्र बोस जानकीनाथ बोस और प्रभावती दत्त की चौदह संतानों में से नौवें थे। उन्होंने कटक में अपने अन्य भाई-बहनों के साथ प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल में पढ़ाई की, जिसे अब स्टीवर्ट हाई स्कूल कहा जाता है। वह एक मेधावी छात्र थे और उन्होंने मैट्रिक परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया था।
उन्होंने कलकत्ता में प्रेसीडेंसी कॉलेज (अब विश्वविद्यालय) में एडमिशन लिया। जब वह 15 वर्ष के थे, तब स्वामी विवेकानंद और श्री रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं और दर्शन से बहुत प्रभावित हुए।
बाद में उन्हें ओटेन नाम के एक प्रोफेसर पर हमला करने के आरोप में कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था।
हालांकि उन्होंने अपील की थी कि वह इस हमले में भागीदार नहीं थे, बल्कि केवल वहां खड़े थे। इस घटना ने उनमें विद्रोह की भावना को प्रज्वलित कर दिया। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर हो रहे दुर्व्यवहार से वह काफी परेशान थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के तहत स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश लिया, जहां उन्होंने वर्ष 1918 में दर्शनशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वे अपने भाई सतीश के साथ भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए लंदन चले गए। वहां उन्होंने परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में अच्छे अंकों के साथ पास हो गए। लेकिन उनके मन में अभी भी मिश्रित भावनाएं थीं क्योंकि उन्हें अब अंग्रेजों द्वारा स्थापित सरकार के तहत काम करना होगा, जिसे वह पहले से ही तिरस्कृत करना शुरू कर चुके थे। इसलिए 1921 में उन्होंने कुख्यात जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना के बाद अंग्रेजों के बहिष्कार के प्रतीक के रूप में भारतीय सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया। सुभाष चंद्र बोस का परिवार
उनके पिता जानकी नाथ बोस, उनकी माता प्रभावती देवी थीं और उनकी 6 बहनें और 7 भाई थे। उनका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न परिवार था जो कायस्थ जाति का था।
उनका एकमात्र उद्देश्य एक दिन स्वतंत्र भारत देखना था वह देश के लिए जिये और देश के लिए मरे भी।स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे और वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) में शामिल हो गए। उन्होंने "स्वराज" नामक समाचार पत्र शुरू किया, जिसका अर्थ है स्व-शासन जो राजनीति में उनके प्रवेश का प्रतीक है और भारत में स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका अभी शुरू हुई है। चितरंजन दास उनके गुरु थे। वर्ष 1923 में वह अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने और स्वयं सीआर दास द्वारा शुरू किए गए समाचार पत्र "फॉरवर्ड" के संपादक बने। उस समय वे कलकत्ता के मेयर भी चुने गए थे।
उन्होंने नेतृत्व की भावना प्राप्त की और बहुत जल्द INC में शीर्ष पर अपना रास्ता बना लिया। 1928 में, मोतीलाल नेहरू समिति ने भारत में डोमिनियन स्टेटस की मांग की लेकिन जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाष चंद्र बोस ने जोर देकर कहा कि अंग्रेजों से भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के अलावा कुछ भी संतुष्ट नहीं करेगा। गांधीजी ने बोस के तरीकों का कड़ा विरोध किया, जो हुक या बदमाश द्वारा स्वतंत्रता चाहते थे, क्योंकि वे स्वयं अहिंसा के दृढ़ विश्वासी थे।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान उन्हें 1930 में जेल भेज दिया गया था, लेकिन 1931 में जब गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे तब अन्य प्रमुख नेताओं के साथ उनका संबंध था। 193 में 1938 में उन्हें कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष के रूप में चुना गया और 1939 में डॉपी सीतारमैय्या के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करके त्रिपुरी अधिवेशन में फिर से चुना गया, जिन्हें स्वयं गांधी का समर्थन प्राप्त था।
उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के दौरान सख्त मानकों को बनाए रखा और छह महीने के भीतर अंग्रेजों से भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। उन्हें कांग्रेस के अंदर से कड़ी आपत्तियों का सामना करना पड़ा जिसके कारण उन्हें कांग्रेस से इस्तीफा देना पड़ा और "फॉरवर्ड ब्लॉक" नामक एक अधिक प्रगतिशील समूह का गठन किया।
उन्होंने विदेशी देशों के युद्धों में भारतीय पुरुषों का उपयोग करने के खिलाफ एक जन आंदोलन शुरू किया, जिसे अपार समर्थन और आवाज मिली, जिसके कारण उन्हें कलकत्ता में नजरबंद कर दिया गया, लेकिन जनवरी 1941 में वे भेस में घर छोड़कर अफगानिस्तान के रास्ते जर्मनी पहुंचे और मिले वहां के नाजी नेता ने अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए उनसे मदद मांगी। उसने जापान से भी मदद मांगी थी। उन्होंने "दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है" के दर्शन का पूरा उपयोग किया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का निधन कब कैसे हुआ
जुलाई 1943 में वह सिंगापुर पहुंचे और रास बिहारी बोस द्वारा शुरू किए गए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की बागडोर संभाली और आजाद हिंद फौज की स्थापना की, जिसे भारतीय राष्ट्रीय सेना के रूप में भी जाना जाता है। इस समय उन्हें "नेताजी" के रूप में सम्मानित किया गया था, जिसके द्वारा उन्हें आज भी आमतौर पर संदर्भित किया जाता है।
INA ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को मुक्त करा लिया लेकिन जब यह बर्मा पहुंचा तो खराब मौसम की स्थिति, साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध में जापान और जर्मनी की हार ने उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। 18 अगस्त 1945 को ताइपेई, ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनके मारे जाने की खबर है, लेकिन कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। ⚜️ 14 जनवरी 2023 ⚜️INTERNATIONAL KITE DAY - January 14, 2023 - National Todayगुजरात में अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव को राज्य के सबसे भव्य त्योहारों में से एक माना जाता है। राज्य में सालाना 200 त्यौहार मनाए जाते हैं, और पतंग उत्सव या उत्तरायण, मनाए जाने वाले सबसे अद्भुत त्योहारों में से एक है। मकर संक्रांति के अवसर पर मनाया जाने वाला यह उत्सव हर साल लगभग आठ दिनों तक चलता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान लंबी नींद के बाद जागते हैं और स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। |
Human Rights Day 2022 मानवधिकारी दिवस |
10 दिसंबर 2022
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विश्व मानवाधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) को अपनाया था। मानवाधिकार दिवस की स्थापना 10 दिसंबर 1950 को की गई। तब से हर साल 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।
इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस 2022 की थीम
'गरिमा, स्वतंत्रता और सभी के लिए न्याय' रखी गई है।
अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस पर लोग एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।
मानवाधिकार दिवस से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
हर साल मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर को मनाया जाता है। मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा 10 दिसंबर 1948 को सुयक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी। इस दिन को चिन्हित करने के लिए 2 साल बाद 4 दिसंबर 1950 को मानवाधिकार दिवस की स्थापना की गई और तभी से इस दिवस को 10 दिसंबर के दिन मनाया जाता है। मानवअधिकार दिवस विश्व के सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनो द्वारा अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। इस दिवस की स्थापना का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में लोगों को उनके अधिकारों को लेकर जागरूक करना है।
मानवाधिकार सभी के लिए आवश्यक है ये एक तरह से प्राकृतिक अधिकार है जो सभी को प्राप्त होने चाहिए। इसलिए हमें केवल अपने अधिकारों के लिए नहीं बल्कि दूसरों के अधिकारों के लिए भी अवाज उडानी चाहिए। दुनिया में जन्मा हर व्यक्ति समान है उसके साथ नस्ल, रंग, भाषा, धार्मिकता और लिंग के अनुसार भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। हर साल मानवाधिकार दिवस को एक नई थीम के साथ मनाया जाता है, इस साल इस दिवस की थीम "गरिमा, स्वतंत्रता और सभी के लिए न्याय" तय की गई है। आइए आपको मानव अधिकार दिवस से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बताएं।
'गरिमा, स्वतंत्रता और सभी के लिए न्याय' रखी गई है।
अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस पर लोग एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।
मानवाधिकार दिवस से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
हर साल मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर को मनाया जाता है। मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा 10 दिसंबर 1948 को सुयक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी। इस दिन को चिन्हित करने के लिए 2 साल बाद 4 दिसंबर 1950 को मानवाधिकार दिवस की स्थापना की गई और तभी से इस दिवस को 10 दिसंबर के दिन मनाया जाता है। मानवअधिकार दिवस विश्व के सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनो द्वारा अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। इस दिवस की स्थापना का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में लोगों को उनके अधिकारों को लेकर जागरूक करना है।
मानवाधिकार सभी के लिए आवश्यक है ये एक तरह से प्राकृतिक अधिकार है जो सभी को प्राप्त होने चाहिए। इसलिए हमें केवल अपने अधिकारों के लिए नहीं बल्कि दूसरों के अधिकारों के लिए भी अवाज उडानी चाहिए। दुनिया में जन्मा हर व्यक्ति समान है उसके साथ नस्ल, रंग, भाषा, धार्मिकता और लिंग के अनुसार भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। हर साल मानवाधिकार दिवस को एक नई थीम के साथ मनाया जाता है, इस साल इस दिवस की थीम "गरिमा, स्वतंत्रता और सभी के लिए न्याय" तय की गई है। आइए आपको मानव अधिकार दिवस से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बताएं।
मानवाधिकार दिवस से जुडे़ कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
1. द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप मानवाधिकार का महत्व समझा गया। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना भी द्वितीय विश्य युद्ध के बाद हुई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लोगों को कई अत्याचारों का सामना करना पड़ा, जिस कारण से एक ऐसे दस्तावेज का निर्माण किया गया जिसे विश्व के सभी नेता माने और इससे मानवाधिकारों की रक्षा की जा सके, जिसके चलते मानव अधिकारों का सार्वजनिक घोषणापत्र (यूएचआरडी) कि स्थापना की गई।
2. यूडीएचआर ड्राफ्ट को तैयार होने में 2 साल से कम का समय लगा था। इसका ड्राफ्ट तैयार करने के लिए आयोग 1947 में पहले बार मिले और 1948 में पेरिस में हुई बैठक के दौरान सयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे अधिकारिक तौर पर अपनाया गया था।
3. मानवाधिकारों का सार्वजनिक घोषणापत्र केवल एक दस्तावेज है जिसके माध्यम से दो संधियों का ड्राफ्ट तैयार किया गया था। जिसमें आर्थिक, सांस्कृतिक और समाजिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय संधि और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय संधि शामिल है।
4.नागरिक और राजनीतिक अधिकारों अतर्राष्ट्रीय संधि (आईसीसीपीआर) में मानवाधिकारों के मूल्यों भाषाण, धर्म की स्वतंत्रता, जीवन जीने का अधिकार और मतदान का अधिकार शामिल है।
5. आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय संधि (आईसीईएससीआर) में भोजना, स्वास्थ्य, शिक्षा और आश्रय समस्याओं के समाधान को लागू करना है।
6. मानवाधिकार का दस्तावेज विश्व में सबसे अधिक अनुवादित होने वाला दस्तावेज है। ये करीब 370 भाषाओं में उपलब्ध है।
7. भारत में मानवाधिकार कानून की स्थापना 28 सितंबर 1993 में की गई थी। उसी साल 12 अक्टूबर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग गठन भी किया गया था।
8. 17वीं सदी की समय पर मानवाधिकार शब्द की जगह प्राकृति अधिकार या व्यकित के अधिकार शब्द का अधिक प्रोयग किया जाता था। आपको बता दें कि प्राकृति अधिकारों की चर्चा हॉब्स और लॉक की रचनाओं में भी की गई थी।
9. 1776 में अमेरिका ने एक स्वतंत्र घोषणा में कहा था कि "सभी मनुष्य को समान बनाया गया है, निर्मात ने उन्हें जीवन, स्वतंत्रता और खुशी की प्राप्ती जैसे कुछ अधिकार दिए है।
10. मानवाधिकारों का सबसे व्यापक उल्लंघन हमें महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हो रही हिंसा और अपराधों में देखने को मिलता है। करीब 603 मिलियन महिलाएं ऐसे देशों में रहती है जहां घरेलु हिंसा को आम माना जाता है। जहां इसे अपराध की श्रेणी में नहीं लिया जाता है और न जाने कितनी महिलाओं की मृत्यु घरेलु हिंसा के कारण होती है। इसके अलावा कई अन्य अपराध है जो महिलाओं को उनके मानवाधिकारों से दूर करते हैं।
हर साल इस दिवस को दुनिया भर में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के आयोजन के साथ मनाया जाता है और इन कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों में उनके अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा की जाती है।
2. यूडीएचआर ड्राफ्ट को तैयार होने में 2 साल से कम का समय लगा था। इसका ड्राफ्ट तैयार करने के लिए आयोग 1947 में पहले बार मिले और 1948 में पेरिस में हुई बैठक के दौरान सयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे अधिकारिक तौर पर अपनाया गया था।
3. मानवाधिकारों का सार्वजनिक घोषणापत्र केवल एक दस्तावेज है जिसके माध्यम से दो संधियों का ड्राफ्ट तैयार किया गया था। जिसमें आर्थिक, सांस्कृतिक और समाजिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय संधि और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय संधि शामिल है।
4.नागरिक और राजनीतिक अधिकारों अतर्राष्ट्रीय संधि (आईसीसीपीआर) में मानवाधिकारों के मूल्यों भाषाण, धर्म की स्वतंत्रता, जीवन जीने का अधिकार और मतदान का अधिकार शामिल है।
5. आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय संधि (आईसीईएससीआर) में भोजना, स्वास्थ्य, शिक्षा और आश्रय समस्याओं के समाधान को लागू करना है।
6. मानवाधिकार का दस्तावेज विश्व में सबसे अधिक अनुवादित होने वाला दस्तावेज है। ये करीब 370 भाषाओं में उपलब्ध है।
7. भारत में मानवाधिकार कानून की स्थापना 28 सितंबर 1993 में की गई थी। उसी साल 12 अक्टूबर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग गठन भी किया गया था।
8. 17वीं सदी की समय पर मानवाधिकार शब्द की जगह प्राकृति अधिकार या व्यकित के अधिकार शब्द का अधिक प्रोयग किया जाता था। आपको बता दें कि प्राकृति अधिकारों की चर्चा हॉब्स और लॉक की रचनाओं में भी की गई थी।
9. 1776 में अमेरिका ने एक स्वतंत्र घोषणा में कहा था कि "सभी मनुष्य को समान बनाया गया है, निर्मात ने उन्हें जीवन, स्वतंत्रता और खुशी की प्राप्ती जैसे कुछ अधिकार दिए है।
10. मानवाधिकारों का सबसे व्यापक उल्लंघन हमें महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हो रही हिंसा और अपराधों में देखने को मिलता है। करीब 603 मिलियन महिलाएं ऐसे देशों में रहती है जहां घरेलु हिंसा को आम माना जाता है। जहां इसे अपराध की श्रेणी में नहीं लिया जाता है और न जाने कितनी महिलाओं की मृत्यु घरेलु हिंसा के कारण होती है। इसके अलावा कई अन्य अपराध है जो महिलाओं को उनके मानवाधिकारों से दूर करते हैं।
हर साल इस दिवस को दुनिया भर में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के आयोजन के साथ मनाया जाता है और इन कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों में उनके अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा की जाती है।
आजाद हिन्द फौज स्थापना दिवस
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21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई थी जिसे जापान ने 23 अक्टूबर 1943 को मान्यता दी थी।
अंगेजों की गुलामी की बेड़ियों मे जकड़ी भारत मां के एक सच्चे और वीर सपूत के तौर पर नेताजी सुभाष च्रंद्र बोस को दर्जा हासिल है. 21 अक्टूबर 1943 के दिन सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की प्रांतीय सरकार बनाई थी. यानी आज आजाद हिंद सरकार के गठन की वर्षगांठ है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में बनी इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड द्वारा भी मान्यता दी गई थी. लेकिन इस सरकार के पहले आजाद हिंद फौज को सबसे पहले राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 29 अक्टूबर 1915 को अफगानिस्तान में बनाई थी. जिसे बाद में सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया गया था. जिसे बाद में सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार के नाम से स्थापित किया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942 में भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए आजाद हिंद फौज या इंडियन नेश्नल आर्मी सशस्त्र सेना का संगठन किया गया था।
इस फौज का गठन जापान में हुआ. इस फौज की स्थापना भारत के एक क्रांतिकारी नेता रासबिहारी बोस ने टोक्यो में की थी. इसके बाद 28 से 30 मार्च तक उन्हे एक सम्मेलन में आजाद हिंद फौज के गठन को लेकर विचार पेश करने के लिए बुलाया गया था।
फौज में 8500 सैनिक थे शामिल
आजाद हिंद फौज के बनने में जापान ने काफी सहयोग किया था. इस फौज में करीब 8500 सैनिक शामिल थे. इसमे एक महिला यूनिट भी थी जिसकी कप्तान लक्ष्मी स्वामीनाथन थी. इस फौज में उन लोगों को शामिल किया गया था जिन्हे जापनान ने बंदी बनाया था. बाद में इस फौज में बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वंयसेवक भी भर्ती किए गए. इस सेना में देश के बाहर रह रहे लोगों ने भी हिस्सा लिया. 19 मार्च 1944 के दिन पहली बार आजाद हिंद फौज के लोगों ने झंड़ा फहराया था।
ऐसे हुआ आजाद हिंद सरकार का हुआ गठन
21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई थी. जिसे जापान ने 23 अक्टूबर 1943 को मान्यता दी. सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद सरकार के पहले प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री भी थे. आजाद हिंद सरकार की आजाद हिंद फौज ने बर्मा की सीमा पर अंग्रेजों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी. इस सरकार को जर्मनी, इटवी और उसके तत्कालीन सहयोगी देशों का समर्थन मिला जिसके बाद भारत में अंग्रेजों की जड़ें हिलने लगी. ये सरकार 1940 के दशक में भारत के बाहर ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ एक राजनीतिक आंदोलन था।
इस सरकार का अपना डाक टिकट और झंडा तिरंगा था. वहीं राष्ट्रगान जन-मन-गण को बनाया गया था. एक दूसरे के अभिवादन के लिए जय हिंद के नारे का इस्तेमाल किया जाता था. 21 मार्च 1944 को चलो दिल्ली के नारे के साथ आजाद हिंद सरकार का हिंगुस्तान की धरती पर आगमन हुआ था।
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World Food Day (विश्व खाद्य दिवस)
? Sunday, 16 ᴏᴄᴛᴏʙᴇʀ ?
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विश्व खाद्य दिवस हर साल 16 अक्टूबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। साल 1945 में 16 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की स्थापना की गई थी। एफएओ की स्थापना की वर्षगांठ के दिन हर साल दुनियाभर में लोग विश्व खाद्य दिवस मनाते हैं। वर्ल्ड फूड डे मनाने का अहम मकसद वैश्विक भूख से निपटने और दुनिया भर में भूख को मिटाने का प्रयास करना है। इस दिन भूखमरी से पीड़ित लोगों को और उनकी मदद के लिए लोगों को जागरूक भी किया जाता है। 2022 में विश्व खाद्य दिवस रविवार (16 अक्टूबर 2022) को पड़ रहा है। वर्ल्ड फूड डे संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा मनाया जाता है, जिसमें भारत भी शामिल है। इस दिन को खाद्य सुरक्षा से संबंधित कई अन्य संगठन जैसे कि विश्व खाद्य कार्यक्रम, कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष भी मनाते हैं।
जानिए विश्व खाद्य दिवस का इतिहास
विश्व खाद्य दिवस पहली बार नवंबर 1979 में मनाया गया था। विश्व खाद्य दिवस मनाने का सुझाव हंगरी के पूर्व कृषि और खाद्य मंत्री डॉ पाल रोमानी ने दिया था। उसी वक्त से यह दिन दुनिया भर के 150 से अधिक देशों में मनाया जाता है। हालांकि कई रिपोर्ट में दावा किया गया जाता है कि संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के 20वें महासम्मेलन में इस दिन के बारे में प्रस्ताव रखा गया था और इस दिन को 1981 मनाना शुरू किया गया था।
विश्व खाद्य दिवस मनाने की जरूरत
विश्व खाद्य दिवस हर साल 16 अक्टूबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। साल 1945 में 16 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की स्थापना की गई थी। एफएओ की स्थापना की वर्षगांठ के दिन हर साल दुनियाभर में लोग विश्व खाद्य दिवस मनाते हैं। वर्ल्ड फूड डे मनाने का अहम मकसद वैश्विक भूख से निपटने और दुनिया भर में भूख को मिटाने का प्रयास करना है। इस दिन भूखमरी से पीड़ित लोगों को और उनकी मदद के लिए लोगों को जागरूक भी किया जाता है। 2022 में विश्व खाद्य दिवस रविवार (16 अक्टूबर 2022) को पड़ रहा है। वर्ल्ड फूड डे संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा मनाया जाता है, जिसमें भारत भी शामिल है। इस दिन को खाद्य सुरक्षा से संबंधित कई अन्य संगठन जैसे कि विश्व खाद्य कार्यक्रम, कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष भी मनाते हैं।
जानिए विश्व खाद्य दिवस का इतिहास
विश्व खाद्य दिवस पहली बार नवंबर 1979 में मनाया गया था। विश्व खाद्य दिवस मनाने का सुझाव हंगरी के पूर्व कृषि और खाद्य मंत्री डॉ पाल रोमानी ने दिया था। उसी वक्त से यह दिन दुनिया भर के 150 से अधिक देशों में मनाया जाता है। हालांकि कई रिपोर्ट में दावा किया गया जाता है कि संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के 20वें महासम्मेलन में इस दिन के बारे में प्रस्ताव रखा गया था और इस दिन को 1981 मनाना शुरू किया गया था।
विश्व खाद्य दिवस मनाने की जरूरत
विश्व खाद्य दिवस खासकर उन लोगों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है, जो एक दिन में एक वक्त का खाना खाने के लिए भी संघर्ष करते हैं। हम इन दिनों जिन समस्याओं से जूझ रहे हैं, उसमें सबसे बड़ा मुद्दा भूखमरी और कुपोषण का ही है। हेल्दी डाइट का मुद्दा अमीर और गरीब दोनों को प्रभावित करता है जिससे मोटापा, डायबिटीज जैसी गंभीर समस्याएं होती हैं। दूसरी ओर, भूख का मुद्दा है जिसके कारण बच्चों में कुपोषण, मृत्यु और असामान्य देखी जाता है।
जानिए वर्ल्ड फूड डे जुड़े ये फैक्ट्स
- रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 821 मिलियन लोग लंबे समय से कुपोषित हैं। कोरोना महामारी के बाद ये आंकड़ा और बढ़ गया है।
-लगभग 99 फीसदी कुपोषित लोग विकासशील देशों में रहते हैं।
-दुनिया भर में भूखे लोगों में लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं।
-लगभग पांच में से एक बच्चे को जन्म के साथ ही पोषित आहार नहीं मिल पाता है।
- हर साल लगभग 20 मिलियन शिशु जन्म के समय कम वजन के साथ पैदा होते हैं, उनमें से 96.5% विकासशील देशों में होते हैं।
- 5 साल से कम उम्र के बच्चों में होने वाली कुल मौतों में से लगभग 50 फीसदी मौत कुपोषण के कारण होती है।
भारत में भूखमरी के आंकड़े
2019 ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 117 देशों में से 102वें स्थान पर था। लिस्ट में भारत के ठीक नीचे नाइजर और उसके ऊपर यानी 116 नंबर पर सिएरा लियोन है। दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश और दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश भारत दुनिया के एक चौथाई कुपोषित लोगों का घर है। लगभग 21.25% आबादी अभी भी 1.90 डॉलर (लगभग 156 रुपये) प्रतिदिन से कम पर जीवन गुजारने को मजबूर है।
राष्ट्रीय शिक्षक दिवस (सर्वपल्ली डॉ. श्री राधाकृष्णन जयन्ती)
⚜️ 5 सितंबर ⚜️
भारत हर साल डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को उनके योगदान और उपलब्धियों को श्रद्धांजलि के रूप में राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्कुल से लेकर कॉलेजों तक छात्र-छात्राएं बड़े ही धुमधाम से उनकी जयंती मनाते हैं।
भारत हर साल डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को उनके योगदान और उपलब्धियों को श्रद्धांजलि के रूप में राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्कुल से लेकर कॉलेजों तक छात्र-छात्राएं बड़े ही धुमधाम से उनकी जयंती मनाते हैं। इस दिन छात्र अपने शिक्षकों का सम्मान करते हैं। 5 सितंबर, 1888 को जन्मे डॉ राधाकृष्णन ने न केवल भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया बल्कि एक विद्वान, दार्शनिक और भारत रत्न से सम्मानित भी थे।
अपनी तमाम उपलब्धियों और योगदानों के बावजूद राधाकृष्णन जीवन भर शिक्षक रहे। शिक्षक दिवस भारत के पहले उपराष्ट्रपति की स्मृति का सम्मान करने और हमारे जीवन में शिक्षकों के महत्व को मनाने के लिए मनाया जाता है।
"उन्होंने कई क्षमताओं में अपने देश की सेवा की है। लेकिन सबसे बढ़कर, वह एक महान शिक्षक हैं जिनसे हम सभी ने बहुत कुछ सीखा है और आगे भी सीखते रहेंगे। हमारे राष्ट्रपति के रूप में एक महान दार्शनिक, एक महान शिक्षाविद् और एक महान मानवतावादी का होना भारत का विशिष्ट विशेषाधिकार है।"
भारत रत्न से सम्मानित हुए
उन्होंने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाया। 1931 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1954 में भारत में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार मिला। उन्हें 1963 में ब्रिटिश रॉयल ऑर्डर ऑफ मेरिट के मानद सदस्य के रूप में भर्ती हुए। डॉ राधाकृष्णन अपने जीवनकाल के दौरान एक मेधावी छात्र, छात्रों के बीच एक प्रसिद्ध शिक्षक थे।
ऐसा कहा जाता है कि जब वे 1962 में भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में सेवा कर रहे थे, तब उनके छात्रों ने उनके जन्मदिन 5 सितंबर को एक विशेष दिन के रूप में मनाने की अनुमति लेने के लिए उनसे संपर्क किया। इसके बजाय डॉ राधाकृष्णन ने समाज में शिक्षकों के योगदान को पहचानने के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया।
⚜️ 5 सितंबर ⚜️
भारत हर साल डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को उनके योगदान और उपलब्धियों को श्रद्धांजलि के रूप में राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्कुल से लेकर कॉलेजों तक छात्र-छात्राएं बड़े ही धुमधाम से उनकी जयंती मनाते हैं।
भारत हर साल डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को उनके योगदान और उपलब्धियों को श्रद्धांजलि के रूप में राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्कुल से लेकर कॉलेजों तक छात्र-छात्राएं बड़े ही धुमधाम से उनकी जयंती मनाते हैं। इस दिन छात्र अपने शिक्षकों का सम्मान करते हैं। 5 सितंबर, 1888 को जन्मे डॉ राधाकृष्णन ने न केवल भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया बल्कि एक विद्वान, दार्शनिक और भारत रत्न से सम्मानित भी थे।
अपनी तमाम उपलब्धियों और योगदानों के बावजूद राधाकृष्णन जीवन भर शिक्षक रहे। शिक्षक दिवस भारत के पहले उपराष्ट्रपति की स्मृति का सम्मान करने और हमारे जीवन में शिक्षकों के महत्व को मनाने के लिए मनाया जाता है।
"उन्होंने कई क्षमताओं में अपने देश की सेवा की है। लेकिन सबसे बढ़कर, वह एक महान शिक्षक हैं जिनसे हम सभी ने बहुत कुछ सीखा है और आगे भी सीखते रहेंगे। हमारे राष्ट्रपति के रूप में एक महान दार्शनिक, एक महान शिक्षाविद् और एक महान मानवतावादी का होना भारत का विशिष्ट विशेषाधिकार है।"
भारत रत्न से सम्मानित हुए
उन्होंने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाया। 1931 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1954 में भारत में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार मिला। उन्हें 1963 में ब्रिटिश रॉयल ऑर्डर ऑफ मेरिट के मानद सदस्य के रूप में भर्ती हुए। डॉ राधाकृष्णन अपने जीवनकाल के दौरान एक मेधावी छात्र, छात्रों के बीच एक प्रसिद्ध शिक्षक थे।
ऐसा कहा जाता है कि जब वे 1962 में भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में सेवा कर रहे थे, तब उनके छात्रों ने उनके जन्मदिन 5 सितंबर को एक विशेष दिन के रूप में मनाने की अनुमति लेने के लिए उनसे संपर्क किया। इसके बजाय डॉ राधाकृष्णन ने समाज में शिक्षकों के योगदान को पहचानने के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया।
हर साल 5 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय दान दिवस यानी इंटरनेशनल चैरिटी डे मनाया जाता है। इस दिन भारत में शिक्षक दिवस भी मनाया जाता है। इसे सबसे पहली बार हंगरी में मनाया गया था। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2012 में हर साल 5 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय दान दिवस मनाने की घोषणा की। उस समय से हर साल 5 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय दान दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य जरूरतमंदों की सहायता करना है। इसके लिए दान दिया जाता है। भारत में दान की प्रथा प्राचीन काल से है।
अंतरराष्ट्रीय दान दिवस का इतिहास
भारत में प्राचीन समय से दान देने और लेने की प्रथा है। वैदिक काल में ब्राह्मण भिक्षा याचन करते थे। जबकि लोग उन्हें दान देकर कृतार्थ होते थे। जबकि गुरुकुल में भी शिक्षा हेतु दक्षिणा देने की प्रथा है। ऐसा कहा जाता है कि मानव जीवन में सबसे बड़ी सेवा परोपकार और दान है। इस मद्देनजर हंगरी में 2011 में संसद में एक विधेयक पेश किया, जिसमें दान इकठ्ठा करने का उल्लेख था। इस विधेयक को सर्वसम्मिति से पास कर दिया गया।
अंतरराष्ट्रीय दान दिवस का महत्व
अंतरराष्ट्रीय दान दिवस का उद्देश्य केवल और केवल जरूरतमंदों की मदद करना और गरीबी हटाना है। इसके लिए यूनिसेफ ने एक संकल्प भी पारित किया है। इस संकल्प पत्र के अनुसार, 2030 तक दुनिया को गरीबी से मुक्त करना है। दुनिया में कई ऐसे देश हैं जो पिछड़े हैं। इन देशों में गरीबी अपने चरम पर है। इन देशों की मदद करना हमारी नैतिक जिम्मेवारी है। इसके लिए दान लेकर जरूरतमदों को आर्थिक सहयोग किया जाता है। इसके साथ ही समाज में पिछड़े और गरीब लोगों की भी सहायता करनी चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय दान दिवस का इतिहास
भारत में प्राचीन समय से दान देने और लेने की प्रथा है। वैदिक काल में ब्राह्मण भिक्षा याचन करते थे। जबकि लोग उन्हें दान देकर कृतार्थ होते थे। जबकि गुरुकुल में भी शिक्षा हेतु दक्षिणा देने की प्रथा है। ऐसा कहा जाता है कि मानव जीवन में सबसे बड़ी सेवा परोपकार और दान है। इस मद्देनजर हंगरी में 2011 में संसद में एक विधेयक पेश किया, जिसमें दान इकठ्ठा करने का उल्लेख था। इस विधेयक को सर्वसम्मिति से पास कर दिया गया।
अंतरराष्ट्रीय दान दिवस का महत्व
अंतरराष्ट्रीय दान दिवस का उद्देश्य केवल और केवल जरूरतमंदों की मदद करना और गरीबी हटाना है। इसके लिए यूनिसेफ ने एक संकल्प भी पारित किया है। इस संकल्प पत्र के अनुसार, 2030 तक दुनिया को गरीबी से मुक्त करना है। दुनिया में कई ऐसे देश हैं जो पिछड़े हैं। इन देशों में गरीबी अपने चरम पर है। इन देशों की मदद करना हमारी नैतिक जिम्मेवारी है। इसके लिए दान लेकर जरूरतमदों को आर्थिक सहयोग किया जाता है। इसके साथ ही समाज में पिछड़े और गरीब लोगों की भी सहायता करनी चाहिए।
कारगिल विजय दिवस ( कारगिल शौर्य / स्मृति दिवस )
🚩 26 जुलाई 🚩
कारगिल की ऊंची चोटियों को पाकिस्तान के कब्जे से आजाद करवाते हुए बलिदान देने वाले देश के वीर सपूतों की याद में हर साल कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को 1999 में कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. युद्ध के दौरान, भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया और "ऑपरेशन विजय" (Operation Vijay) के हिस्से के रूप में टाइगर हिल (Tiger Hills) और अन्य चौकियों पर कब्जा करने में सफल रही।
लद्दाख (Ladakh) के कारगिल में 60 दिनों से अधिक समय तक पाकिस्तानी सेना के साथ लड़ाई जारी रही और अंत में भारत को इस युद्ध में जीत हासिल हुई. हर साल, इस दिन हम पाकिस्तान द्वारा शुरू किए गए युद्ध में शहीद हुए सैकड़ों भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं।
26 जुलाई 1999 को सेना ने मिशन को सफल घोषित किया. लेकिन जीत की कीमत ज्यादा थी।
इस साल कारगिल विजय दिवस की 23वीं वर्षगांठ है. भारतीय सेना ने दिल्ली से कारगिल विजय दिवस मोटर बाइक अभियान को हरी झंडी दिखाई. युद्ध स्मारक पर ध्वजारोहण समारोह के लिए एक विशेष कार्यक्रम की योजना बनाई गई है. शहीदों के परिवारों का स्मारक स्थल में सम्मान किया जाएगा. इस अवसर पर द्रास में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करने की भी योजना है. कार्यक्रम में शेरशाह की टीम मौजूद रहेगी. इस कार्यक्रम में कोरियोग्राफ किए गए नृत्य प्रदर्शन, देशभक्ति गीतों का प्रदर्शन किया जाएगा।
🚩 26 जुलाई 🚩
कारगिल की ऊंची चोटियों को पाकिस्तान के कब्जे से आजाद करवाते हुए बलिदान देने वाले देश के वीर सपूतों की याद में हर साल कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को 1999 में कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. युद्ध के दौरान, भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया और "ऑपरेशन विजय" (Operation Vijay) के हिस्से के रूप में टाइगर हिल (Tiger Hills) और अन्य चौकियों पर कब्जा करने में सफल रही।
लद्दाख (Ladakh) के कारगिल में 60 दिनों से अधिक समय तक पाकिस्तानी सेना के साथ लड़ाई जारी रही और अंत में भारत को इस युद्ध में जीत हासिल हुई. हर साल, इस दिन हम पाकिस्तान द्वारा शुरू किए गए युद्ध में शहीद हुए सैकड़ों भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं।
26 जुलाई 1999 को सेना ने मिशन को सफल घोषित किया. लेकिन जीत की कीमत ज्यादा थी।
इस साल कारगिल विजय दिवस की 23वीं वर्षगांठ है. भारतीय सेना ने दिल्ली से कारगिल विजय दिवस मोटर बाइक अभियान को हरी झंडी दिखाई. युद्ध स्मारक पर ध्वजारोहण समारोह के लिए एक विशेष कार्यक्रम की योजना बनाई गई है. शहीदों के परिवारों का स्मारक स्थल में सम्मान किया जाएगा. इस अवसर पर द्रास में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करने की भी योजना है. कार्यक्रम में शेरशाह की टीम मौजूद रहेगी. इस कार्यक्रम में कोरियोग्राफ किए गए नृत्य प्रदर्शन, देशभक्ति गीतों का प्रदर्शन किया जाएगा।
आयकर दिवस (162वां) 📜24 जुलाई📜
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes (CBDT) ने 24 जुलाई 2022 को 162वां आयकर दिवस मनाने जा रहा है. भारत में, आयकर दिवस हर साल 24 जुलाई को मनाया जाता है, क्योंकि सर जेम्स विल्सन ने भारत में पहली बार 24 जुलाई 1860 को आयकर पेश किया गया था.इस कर का उद्देश्य 1857 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता के पहले युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन को हुए नुकसान की भरपाई करना था। 24 जुलाई को पहली बार 2010 में आयकर दिवस के रूप में मनाया गया था।
कब हुई थी इनकम टैक्स की शुरुआत :
वर्ष 1860 से अब तक विभाग हमेशा ही सबसे खास रहा. आजादी के बाद तो आयकर ही देश में राजस्व और सरकारी खजाना जुटाने का प्रमुख माध्यम रहा. आजादी से अब तक बीते सात दशक में आयकर प्राप्ति में चार हजार गुना तक की वृद्धि करते हुए विभाग ने हजारों करोड़ रुपए का लक्ष्य प्राप्त किया है।
कैसे होती हैं तैयारियां :
आयकर दिवस से पहले का सप्ताह देश भर में IT विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय अपने अपने टारगेट का लेखा जोखा तैयार करते हैं. करों के भुगतान को मूल्य मानदंड के रूप में बढ़ावा देने के लिए और संभावित करदाताओं को संवेदनशील बनाने के लिए देश भर में कई कार्यक्रम हर साल आयोजित किए जाते हैं। करों का भुगतान सभी नागरिकों का एक नैतिक कर्तव्य है। ये समझाने के लिए कई बार विभाग आकर्षक ऑफर लाकर टैक्स चोरी करने वालों को कर अदा करने का मौका भी देते हैं।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes (CBDT) ने 24 जुलाई 2022 को 162वां आयकर दिवस मनाने जा रहा है. भारत में, आयकर दिवस हर साल 24 जुलाई को मनाया जाता है, क्योंकि सर जेम्स विल्सन ने भारत में पहली बार 24 जुलाई 1860 को आयकर पेश किया गया था.इस कर का उद्देश्य 1857 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता के पहले युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन को हुए नुकसान की भरपाई करना था। 24 जुलाई को पहली बार 2010 में आयकर दिवस के रूप में मनाया गया था।
कब हुई थी इनकम टैक्स की शुरुआत :
वर्ष 1860 से अब तक विभाग हमेशा ही सबसे खास रहा. आजादी के बाद तो आयकर ही देश में राजस्व और सरकारी खजाना जुटाने का प्रमुख माध्यम रहा. आजादी से अब तक बीते सात दशक में आयकर प्राप्ति में चार हजार गुना तक की वृद्धि करते हुए विभाग ने हजारों करोड़ रुपए का लक्ष्य प्राप्त किया है।
कैसे होती हैं तैयारियां :
आयकर दिवस से पहले का सप्ताह देश भर में IT विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय अपने अपने टारगेट का लेखा जोखा तैयार करते हैं. करों के भुगतान को मूल्य मानदंड के रूप में बढ़ावा देने के लिए और संभावित करदाताओं को संवेदनशील बनाने के लिए देश भर में कई कार्यक्रम हर साल आयोजित किए जाते हैं। करों का भुगतान सभी नागरिकों का एक नैतिक कर्तव्य है। ये समझाने के लिए कई बार विभाग आकर्षक ऑफर लाकर टैक्स चोरी करने वालों को कर अदा करने का मौका भी देते हैं।
7/23/2022
लोकमान्य श्री बालगंगाधर तिलक का जन्म दिवस I Birthday of Lokmanya Shri Balgangadhar Tilak
Read Nowअमर शहीद पं. चन्द्रशेखर आजाद का जन्म दिवस
⚜️23 जुलाई⚜️
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ था।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे।
1921 में मात्र 13 साल की उम्र में उन्हें संस्कृत कॉलेज के बाहर धरना देते हुए पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस ने उन्हें ज्वॉइंट मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। जब मजिस्ट्रेट ने उनका नाम पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया- 'आजाद'। मजिस्ट्रेट ने पिता का नाम पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया- स्वाधीनता। मजिस्ट्रेट ने तीसरी बार घर का पता पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया- जेल।
उनके जवाब सुनने के बाद मजिस्ट्रेट ने उन्हें 15 कोड़े लगाने की सजा दी। थोड़ी ही देर में उनकी पूरी पीठ लहूलुहान हो गई। उस दिन से उनके नाम के साथ 'आजाद' जुड़ गया।
देशप्रेम, वीरता और साहस की एक ऐसी ही मिसाल थे शहीद क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद। 25 साल की उम्र में भारतमाता के लिए शहीद होने वाले इस महापुरुष के बारे में जितना कहा जाए, उतना कम है।
⚜️23 जुलाई⚜️
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ था।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे।
1921 में मात्र 13 साल की उम्र में उन्हें संस्कृत कॉलेज के बाहर धरना देते हुए पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस ने उन्हें ज्वॉइंट मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। जब मजिस्ट्रेट ने उनका नाम पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया- 'आजाद'। मजिस्ट्रेट ने पिता का नाम पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया- स्वाधीनता। मजिस्ट्रेट ने तीसरी बार घर का पता पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया- जेल।
उनके जवाब सुनने के बाद मजिस्ट्रेट ने उन्हें 15 कोड़े लगाने की सजा दी। थोड़ी ही देर में उनकी पूरी पीठ लहूलुहान हो गई। उस दिन से उनके नाम के साथ 'आजाद' जुड़ गया।
देशप्रेम, वीरता और साहस की एक ऐसी ही मिसाल थे शहीद क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद। 25 साल की उम्र में भारतमाता के लिए शहीद होने वाले इस महापुरुष के बारे में जितना कहा जाए, उतना कम है।
7/23/2022
लोकमान्य श्री बालगंगाधर तिलक का जन्म दिवस II Birthday of Lokmanya Shri Balgangadhar Tilak
Read Nowलोकमान्य श्री बालगंगाधर तिलक का जन्म दिवस
💎23 जुलाई💎
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जनक, समाज सुधारक, राष्ट्रीय नेता, भारतीय इतिहास, संस्कृत, हिन्दू धर्म, गणित और खगोल विज्ञान के विद्वान बाल गंगाधर तिलक की आज जयंती है।
23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी. बाल गंगाधर तिलक एक भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे. उनके अनुयायियों ने उन्हें 'लोकमान्य' की उपाधि दी।
उन्होंने कहा था, स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूंगा. आजादी के परवानों के लिए ये महज कुछ शब्द भर नहीं थे बल्कि एक जोश, एक जुनून था जिसके जरिए लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानियां देकर देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाई थी।
उन्होंने ब्रिटिश सरकार को पूर्ण स्वराज देने की मांग की, जिसके फलस्वरूप और केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।
तिलक अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए भी जाने जाते थे। ऐसे भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानी का निधन 1 अगस्त 1920 को मुंबई में हुआ।
💎23 जुलाई💎
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जनक, समाज सुधारक, राष्ट्रीय नेता, भारतीय इतिहास, संस्कृत, हिन्दू धर्म, गणित और खगोल विज्ञान के विद्वान बाल गंगाधर तिलक की आज जयंती है।
23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी. बाल गंगाधर तिलक एक भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे. उनके अनुयायियों ने उन्हें 'लोकमान्य' की उपाधि दी।
उन्होंने कहा था, स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूंगा. आजादी के परवानों के लिए ये महज कुछ शब्द भर नहीं थे बल्कि एक जोश, एक जुनून था जिसके जरिए लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानियां देकर देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाई थी।
उन्होंने ब्रिटिश सरकार को पूर्ण स्वराज देने की मांग की, जिसके फलस्वरूप और केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।
तिलक अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए भी जाने जाते थे। ऐसे भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानी का निधन 1 अगस्त 1920 को मुंबई में हुआ।
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